Bhiwani में समेकित जल संग्रहण परियोजना के तहत सोमवार को हरियावास के सामुदायिक केंद्र में और मंगलवार को झांझड़ा श्योराण के पंचायत भवन में जल संरक्षण के विषय पर एक प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। इस शिविर में गांवों के वाटरशेड कमेटी के सदस्य और अन्य संबंधित लोग शामिल हुए।
कार्यशाला में दी गई जानकारी:
एचआईआरडी नीलोखेड़ी के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रो. कमलदीप सांगवान ने बताया कि जल संरक्षण की आवश्यकता हरियाणा के जल संकट को देखते हुए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि बुजुर्गों द्वारा बनाई गई बावड़ियां और कुएं जल संरक्षण की अद्भुत मिसाल हैं, लेकिन समय के साथ हम जल संरक्षण के महत्व को भूल गए और भूमि जल का अत्यधिक दोहन किया। परिणामस्वरूप, राज्य के अधिकांश हिस्से ड्राई जोन में शामिल हो गए।
उन्होंने आगे कहा कि अब समेकित जल संग्रहण परियोजना के तहत गांवों में वाटरशेड समितियों का गठन किया गया है, जो जल संरक्षण के कार्यों के सफल क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार होंगी। शिविर में उन्होंने वर्षा के पानी को अधिकतम रूप से भूमि में संरक्षित करने के उपायों की जानकारी दी और भविष्य के लिए वर्षा जल के सही उपयोग के महत्व पर जोर दिया।
तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. महावीर सांगवान की जानकारी:
तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. महावीर सांगवान ने वाटरशेड समितियों की जिम्मेदारियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि कार्यों की सूची (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) पहले ही तैयार की जा चुकी है और अब इन कार्यों का क्रियान्वयन समितियों द्वारा किया जाएगा। उन्होंने वर्षा जल के संग्रहण के उपायों पर भी चर्चा की, जैसे कि जोहड़ और कुएं का निर्माण, इंजेक्शन वैल, भूमि समतल करना और डोलबंदी के जरिए वर्षा के पानी को भूमि में संजोना।
एएससीओ डॉ. अनिल राठी का योगदान:
एएससीओ डॉ. अनिल राठी ने कम पानी में अधिक पैदावार प्राप्त करने के उपायों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हरी व जैविक खादों का उपयोग करने से मिट्टी की जल सोखने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही फव्वारा और टपका सिंचाई विधियों को अपनाकर पानी का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है, जिससे सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हो सकती है और जल स्तर में गिरावट को रोका जा सकता है।