Haryana के बारे में आपने ये कहावत सुनी होगी कि जहां दूध दही का खाना, वो मेरा हरियाणा। पर ऐसा गांव नहीं देखा होगा जहां दूध व लस्सी फ्री में मिलते हों। जी हां भिवानी जिला जो खेलों और दूध-दही के लिए मशहूर है, इसका एक गांव है जो अपनी अनोखी परंपरा के कारण सभी का ध्यान आकर्षित करता है। नाथूवास गांव, जिसे मिनी क्यूबा के नाम से भी जाना जाता है, यहां के लोग दूध और लस्सी का व्यापार नहीं करते, बल्कि यह दोनों मुफ्त में बांटने की परंपरा निभाते हैं।
नाथूवास गांव में करीब 800 घर हैं, जहां अधिकांश लोग पशुपालन करते हैं। लेकिन यहां एक अजीब परंपरा है— यहां दूध और लस्सी कभी बेची नहीं जाती, बल्कि जरूरतमंदों को मुफ्त में दी जाती है। यहां तक कि यदि किसी की भैंस दूध देना बंद कर देती है, तो वह अपने पड़ोसी से मुफ्त में दूध लेता है।
परंपरा के पीछे का रहस्य

नाथुवास गांव में हर छोटे बच्चे से लेकर हर बड़े बुजुर्ग तक ने कबी अपने गांव में किसी को दूथ बेचते नहीं देखा है। गांव के लोग इसके पीछे की कहानी बताते है। ये कहानी दशकों पुरानी है। वो कहते है कि उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है कि करीब 150 साल पहले गांव के पशुओम में भयंकर बीमारी आ गई थी। एक के बाद एक पशु मरने लगे थे। इसे देखकर गांव के लोग परेशान हो गए।
तब गांव के महंत फूलपुरी ने बचे हुए पशुओं को एक रस्से के नीचे से निकाला और गांव वालों को कहां कि कोई भी गांव का आदमी कभी दूध नहीं बेचेगा। फिर कभी इस गांव के पशुओं में ऐसी बीमारी नहीं आएगी। तब से लेकर आज तक किसी ने दूध नहीं बेचा है। गांव के लोग बताते है कि जरुरत पड़ने पर पड़ोसी को दूध फ्रई दे देते है पर बेचते कभी नहीं हैं।
लाखों रुपये की भैंस, खर्च कैसे चलता है?

नाथूवास गाव के हर घर में कई कई भैंसें है, जिनकी कीमत लाखों रुपये में है। ऐसे में हर कोई सवाल करता है कि ग्रामीण खर्च कैसे चलाते है। इसके बारे में नाथुवास गांव के लोग बताते है कि गांव में कोई भी दूध नहीं बेचता, पर घी बनाकर सभी बेच सकते है और बेचते भी हैं। इसी से भैंस का खर्च भी निकल जाता है और कुछ बचत भी हो जाती है।
दूध बेचने वालों के साथ हुई अनहोनी
गांव में हर तरह के लोग होते हैं, जब यह किया गया कि क्या कभी दूध बेचने के कोशिश की है? तो ग्रामीणों ने बताया कि जब कभी भी किसी ने ऐसा किया तो इसके साथ अनहोनी हुई है। अगर किसी ने दूध बेचा है तो उसकी भैंस के थनों में से दूध की जगह खून आने लगा या फिर पशु ही मर जाता है।
ऐसे व्यक्ति को जान माल की हानि हुई। इसके बाद गांव में दूध ना बेचने की परंपरा दशकों से जारी है। आपको बता दें कि इस गांव में पशु अस्पताल है। गांव के लोग बताते है कि पशुओं को अस्पताल में कभी कभार ही ले जाने की जरुरत पड़ती है। वे कभी बीमार नहीं पड़ते हैं।
इस परंपरा के हैं कई फायदे

इसे आस्था मानें या अंधविश्वास, पर गांव के पशुओ में दशकों से कोई महामारी ना आना, अपने आप में रोचक भी है और गांव वालों के लिए फायदेमंद भी। साथ में दूसरा फायदे ये भी है कि ब्याह-शादियों में जरुरत पर गांव के लोगों को दूध मिलता है, वो भी फ्री। इसके अलावा, दूध ना बेचे जाने पर गांव के बच्चों को पीने के लिए दूध पर्याप्त मात्रा में मिलता है। जो इस गांव के बच्चों की सेहत को सुधारता है।