अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को करवा चौथ के 4 दिन बाद मनाया जाता है। यह व्रत माता अहोई को समर्पित है, जो मां पार्वती जी की स्वरूप हैं। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान प्राप्ति और उसकी लम्बी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। महिलाएं इस दिन अहोई माता की पूजा करती हैं। साथ ही इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है। अहोई अष्टमी का व्रत काफी कठोर माना जाता है। इस दिन महिलाएं बिना जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं और फिर तारे देखने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। अहोई अष्टमी व्रत महिलाओं द्वारा अपनी संतान की सलामती और उज्ज्वल भविष्य के लिए रखा जाता है। अहोई अष्टमी को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। करवा चौथ की तरह अहोई अष्टमी भी एक कठिन व्रत है क्योंकि इस व्रत को भी निर्जला रखने का विधान है। इस व्रत का पारण तारों को अर्घ्य देकर किया जाता है।
बन रहा है ये दुर्लभ संयोग
अष्टमी तिथि का प्रारंभ 05 नवम्बर प्रातः 12 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है। वहीं अष्टमी तिथि समापन 06 नवम्बर प्रातः 03: बजकर 18 मिनट पर होगा। साथ ही इस दिन रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। माना जाता है कि इस योग में रखे गए व्रत का साधक को दोगुना फल मिलता है।

इस प्रकार सुनें कथा
अहोई अष्टमी पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ-साथ उनके पूरे परिवार यानी भगवान कार्तिक और गणेश जी की भी पूजा करनी चाहिए। अहोई अष्टमी की कथा सुनते समय सात प्रकार के अनाज को आपकी हथेली पर रखें और व्रत कथा सुनने के बाद गाय को मिला दें।
अहोई अष्टमी पूजन की सामग्री
जल से भरा हुआ कलश, पुष्प, धूप-दीप, रोली, दूध-भात, मोती की माला या चांदी के मोती, गेंहू, घर में बने 8 पुड़ी और 8 मालपुए और दक्षिणा।

इन्हें कराएं भोजन
पूजा के समय अपने पुत्र या पुत्री को अपने साथ बिठाएं और भगवान को भोग लगाने के बाद सबसे पहले बच्चों को प्रसाद खिलाएं। साथ ही इस दिन ब्राह्मण, जरूरतमंदों या गाय को भोजन करना भी बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है।
इन बातों का रखें ध्यान
अहोई अष्टमी के दिन मिट्टी से जुड़ा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। ऐसे में बगीचे आदि में भी काम करने से बचना चाहिए। साथी इस दिन नुकीली चीजों को भी इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए, इसलिए सिलाई आदि से जुड़े कार्य न करें। अहोई अष्टमी के दिन किसी बड़े का अपमान न करें, न ही किसी को अपशब्द कहें। साथ ही इस दिन लड़ाई-झगड़ा करने से भी बचना चाहिए। ऐसा करने से आपका व्रत खंडित हो सकता है। तारों को अर्घ्य देते समय स्टील से बने लोटे का ही इस्तेमाल करना चाहिए, इसके लिए तांबे से बने लोटे का इस्तेमाल न करें।

अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला विशेष पर्व है। अहोई अष्टमी का व्रत करने से संतान की शिक्षा, करियर, कारोबार और उसके पारिवारिक जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं। मान्यता है कि जिन महिलाओं की संतान दीर्घायु नहीं होती हो या गर्भ में ही नष्ट हो जाते हैं तो इस व्रत को करने से उन्हें संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है।

अहोई अष्टमी की व्रत कथा
अहोई अष्टमी की व्रत कथा के अनुसार, एक औरत अपने 7 पुत्रों के साथ एक गांव में रहती थी। वहां गलती से उसकी कुल्हाडी से एक पशु के शावक की हत्या हो गई। उस घटना केे बाद से उस औरत के सातों पुत्रों की एक के बाद एक मृत्यु होती गई। इस घटना से दुखी होकर औरत ने अपनी कहानी गांव की किसी औरत को सुनाई। उस औरत ने उसे ये सुझाव दिया कि वह माता अहोई अष्टमी की आराधना करे। पशु के शावक की के पश्चाताप के लिए उस औरत ने अहोई माता के चित्र के साथ-साथ शावक का चित्र भी बनाया और उनकी पूजा करने लगी। उस महिला ने 7 वर्षों तक लगातार अहोई अष्टमी का व्रत रखा और आखिर में उसके सातों पुत्र फिर से जीवित हो गए।

