Binshi lal indira gandhi

Chaudhary Bansi Lal पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय गुलजारी लाल नंदा को अपना गुरु मानते थे

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आज हम आपको पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र, संजय गांधी के बेहद करीबी आधुनिक हरियाणा के जनक Chaudhary Bansi Lal के हरियाणा को विकास के शिखर पर पहुंचाने की कहानी के साथ उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्सों और कुछ बुरे दिनों की यादों जिनका चौधरी बंसीलाल को सामना करना पड़ा, इस लेख के माध्यम से आपको रुबरू कराने की कोशिश करेंगे। चौधरी बंसीलाल पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय गुलजारी लाल नंदा को अपना गुरु मानते थे।

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वैसे तो तीन लालों की बात किए बिना हरियाणा की राजनीति अधूरी है जिसमें चौधरी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल का नाम शामिल है। लेकिन जब हम आधुनिक हरियाणा के जनक और विकास पुरुष की बात करते हैं तो एक ऐसी शख्शियत का नाम हमारे जहन में उभरता है उसका नाम चौधरी बंसीलाल है। हरियाणा को विकास की बुलंदियों पर जाने की पूरा श्रेय चौधरी बंसीलाल को जाता है। लेकिन साथ ही एमरजेंसी के दौरान हरियाणा में जो हुआ वह उनके अच्छे कामों पर एक बदनुमा दाग की छाप छोड़ गया।

लिफ्ट इरीगेशन योजना बंसीलाल की देन
अपनी पहली पारी में चौधरी बंसीलाल ने बड़ी उपलब्धियां अपने नाम की थी। हरियाणा के प्रत्येक गांवों को सड़क मार्गों से जोड़ा गया, हरेक गांव में बिजली पहुंचाई गई। दक्षिण और पश्चिम हरियाणा के मरुस्थली क्षेत्र में हरी-भरी फसल लहलहाने में लिफ्ट इरीगेशन योजना मील का पत्थर साबित हुई थी। चौधरी बंसीलाल ने 70 के दशक में तराई वाली नहरों से मोटरों के माध्यम से पानी उठाकर ऊंचे टीलों तक पहुंचाने का काम किया।

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काम के बल पर आमजन से विकास पुरुष व आधुनिक हरियाणा के निर्माता और लौहपुरुष और भगीरथ जैसे उपनाम पाने वाले इंदिरा गांधी और संजय गांधी के विश्वासपात्र चौधरी बंसीलाल ने नाटकीय घटनाक्रम के बीच 22 मई, 1968 में पहली बार हरियाणा की कमान संभाली थी। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने ऐसी राह पकड़ी, जिससे कुछ समय के लिए सूबे में जोड़तोड़ की राजनीति किनारे लग गई।

पिता नहीं दिलाना चाहते थे बंसीलाल को उच्च शिक्षा दिलाने के हक में नहीं थे
चौधरी बंसीलाल का जन्म तत्कालीन रियासत लोहारू के गांव गोलागढ़ में 26 अगस्त 1927 को एक संपंन परिवार में मोहर सिंह के घर हुआ। चौधरी बंसीलाल की आरंभिक पढ़ाई गांव में ही हुई । उनके पिता बंसीलाल को उच्च शिक्षा दिलाने के हक में नहीं थे इसलिए उनके पिता ने उन्हें अनाज के व्यापार में लगा दिया। लेकिन पढ़ाई में रूचि के चलते बंसीलाल ने पिता से छिपकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

1956 में पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। 1972 में, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें क्रमशः विधिशास्त्र एवं विज्ञान की मानद उपाधि से विभूषित किया।चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने

चौधरी बंसीलाल के राजनीतिक जीवन की चर्चा करें तो वह एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप 1943 से 1944 तक लोहारू रियासत में परजा मंडल के सचिव रहे। 1957 से 1958 बार एसोसिएशन भिवानी के अध्यक्ष रहे।1959 से 1962 तक जिला कांग्रेस कमेटी हिसार के अध्यक्ष रहे। बाद कांग्रेस कार्यकारिणी समिति तथा कांग्रेस संसदीय बोर्ड के सदस्य बने।

चौधरी बंसीलाल चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने
चौधरी बंसीलाल 1968, 1972 1986 और 1996 में चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वे सात बार 1967 ,1968 ,1972 ,1986 ,1991 ,1996 , 2000 में हरियाणा विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए | दिसंबर 1975 से 20 दिसंबर 1975 तक केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री थे | 21 दिसंबर 1975 से 24 मार्च 1977 तक केंद्रीय रक्षा मंत्री रहे| 1980-82 के बीच संसदीय समिति और सरकारी उपक्रम समिति के सदस्य रहे | 1982-84 के बीच प्राक्कलन समिति(Estimates Committee) के भी अध्यक्ष थे। 31 दिसम्बर 1984 को वे रेल मंत्री और बाद में परिवहन मंत्री बने।

वह दो बार 1960 से 1966 और 1976 से 1980 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। वे तीन बार 1980 से 1984, 1985 से 1986 और 1989 से 1991 तक लोकसभा के सदस्य रहे। 28 मार्च 2006 को 79 साल की आयु में चौधरी बंसीलाल का निधन हो गया।

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ऐसे हुई चौधरी बंसीलाल के पहली बार मुख्यमंत्री बनने की शुरूआत
चौधरी बंसीलाल के पहली बार मुख्यमंत्री बनने की कहानी की शुरूआत 1967 में तब शुरू हुई जब भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के कांग्रेस के मुख्यमंत्री बनते हैं। लेकिन 12 विधायकों ने पाला बदला और भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिर गई और राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व में बन गई। लेकिन राव बीरेंद्र सिंह सरकार भी 9 महीने में गिर जाती है। साल 1968 में विधानसभा को भंग कर दिया जाता है हरियाणा में मध्यावधि चुनाव का ऐलान हो जाता है।

तब हरियाणा कांग्रेस में तीन गुट एक्टिव थे जिसमें एक भगवत दयाल शर्मा का, दूसरा देवीलाल का और तीसरा रामकृष्ण गुप्ता का। राव बीरेंद्र सिंह विशाल हरियाणा पार्टी नाम से राजनीतिक दल बना चुके थे। उस कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता पार्टी के भीतर गुटबाजी रोकने की थी। ऐसे में कांग्रेस ने हरियाणा में अपने कई वरिष्ठ नेताओं को चुनावी अखाड़े से दूर रखने का फैसला किया। इसमें भगवत दयाल शर्मा, देवीलाल, रामकृष्ण गुप्ता जैसे कई नेता शामिल थे। लेकिन, देवीलाल अपने बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को ऐलनाबाद से टिकट दिलाने में कामयाब रहे।

गुलजारी लाल नंदा ने मुख्यमंत्री पद के लिए चौधरी बंसीलाल का नाम आगे बढ़ाया

चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस को चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला। विधायक दल की बैठक हुई बीडी शर्मा को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। लेकिन हाइकमान शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने पर राजी नहीं था तब बंसीलाल का नाम सामने आया लेकिन, मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए खींचतान ऐसी चली कि मामला दिल्ली हाईकमान तक पहुंच गया। ऐसे में गुलजारी लाल नंदा ने मुख्यमंत्री पद के लिए चौधरी बंसीलाल का नाम आगे बढ़ाया। और कुछ घंटे बाद ही कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा की अध्यक्षता में कांग्रेस विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें बंसीलाल के नाम पर फाइनल मुहर लग गई। कहा जाता है कि चौधरी बंसीलाल गुलजारी लाल नंदा को अपना गुरु मानते थे।

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शराबबंदी का फैसला आत्मघाती कदम
कांग्रेस के दिग्गज राजनीतिज्ञ, हरियाणा को विकास के पंख लगाने वाले, भगीरथ की उपाधि पाने वाले विकास पुरुष चौधरी बंसीलाल के राजनीतिक कैरियर को शराबबंदी के फैसले ने काफी धक्का पहुंचाया। बता दें कि 1996 में चौधरी बंसीलाल ने कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की।

चुनाव के दौरान हरियाणा में शराबबंदी के वादे ने बंसीलाल को विधानसभा चुनाव में जीत दिलाई और वह चौथी बार हरियाणा में सत्ता में आए। सरकार बनते ही हरियाणा में शराबबंदी के वादे पर अमल हुआ। लेकिन शराबबंदी चौधरी बंसीलाल के लिए आत्मघाती कदम साबित हुआ और अंतत उन्हें हरियाणा में शराबबंदी का फैसला वापस लेना पड़ा। शराबबंदी का फैसला वापस लेने के कुछ माह बाद ही हविपा के विधायकों ने बगावत कर दी और बंसीलाल सरकार गिर गई।

रोचक किस्से

ऐसे पड़ा आयाराम गयाराम का जुमला
हरियाणा उदय के बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने भगवत दयाल शर्मा। तब हरियाणा कांग्रेस में कई गुट सक्रिय थे। साल 1967 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ, तब हरियाणा में विधानसभा की 81 सीटें थीं, जिसमें से 48 पर कांग्रेस उम्मीदवार जीते। भारतीय जनसंघ के खाते में 12 सीटें आईं। निर्दलीय की संख्या 16 थी। चुनाव के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भगवत दयाल शर्मा ने शपथ ली। लेकिन, सत्ता के लिए उठापठक का खेल शुरू हो गया।

हफ्ते भर में ही 12 कांग्रेसी विधायकों ने पाला बदला भगवत दयाल सरकार गिर गई। जोड़-तोड़ कर सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर राव बीरेंद्र सिंह ने शपथ ली। सत्ता के लिए एक-दूसरे को लंगड़ी मारने का ऐसा खेल चला, जिसने पूरे देश को सन्न कर दिया। उसी साल हसनपुर सीट से चुने गए थे गया लाल विधायक चुने गए। लेकिन, सत्ता की चाह में गया लाल ने 9 घंटे के भीतर दो बार पाला बदला। इसके बाद भारतीय राजनीति के शब्दकोष में जुमला जुड़ गया… आया राम, गया राम। राव बीरेंद्र सिंह की सरकार भी बहुत मुश्किल से 241 दिन ही चल पाई।

देवीलाल बंसीलाल


इस बात पर उतारा ताऊ देवीलाल को अपनी कार से
अब हम उस किस्से से आपको रूबरू करवाते हैं जब चौधरी बंसीलाल ने ताऊ देवीलाल को अपनी कार से नीचे उतार दिया था मामला कुछ यूं था चूंकि बंसीलाल अपने अक्खड़ और तुनकमिजाज स्वभाव के लिए जाने जाते थे। बस ऐसे की कुछ घटना घटी की मिसाल बन गई । मुख्यमंत्री बनने के बाद किसी काम के लिए बंसीलाल दिल्ली जा रहे थे ताऊ देवीलाल जो हरियाणा स्टेट खादी बोर्ड के चेयरमैन थे वे भी उनके साथ गाड़ी में थे।

ताऊ देवीलाल किसी मसले पर उन्हें बार बार सलाह दे रहे थे। बार बार सलाह देने से बंसीलाल परेशान हो गए उन्होंने ड्राइवर से कार रुकवाई और देवीलाल को बीच रास्ते में उतार दिया। फिर चिलचिलाती धूप में बस से देवीलाल गंतव्य तक पहुंचे । उस समय हरियाणा में यह किस्सा लोगों में चर्चा का विषय बन गया।इससे कुछ दिन के बाद ही एक और घटना घटी जिसने इस गंभीर किस्से को दिलचस्प बना दिया हुआ यूं कि बंसीलाल फिर दिल्ली जा रहे थे इस बार उनके साथ गाड़ी में चौधरी सुल्तान सिंह थे। किसी मामले पर बातचीत के दौरान बंसीलाल ने चौधरी सुल्तान सिंह से सलाह मांगी ।

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इस पर सुल्तान सिंह ने कहा कि वे तभी सलाह देंगे कि गाड़ी को किसी पेड़ की छांव में रोकें। बंसीलाल ने इसकी वजह पूछी तो सुल्तान सिंह ने कहा कि अगर आपने धूप में कार से उतार दिया तो झुलस जाऊंगा। यह सुनकर बंसीलाल अपनी हंसी नहीं रोक पाए। इसके बाद जब भी चौधरी बंसीलाल दिल्ली जाते तो चौधरी सुल्तान सिंह को अपने साथ लेकर जाते थे।

सड़कों के मोड़ और मास्टरों की मरोड़
कहते हैं सड़कों के मोड़ और मास्टरों की मरोड़ बंसीलाल ने निकाली। यह किस्सा तब चला था, जब उन्होंने अध्यापकों के दूर-दूर तबादले कर दिए थे। अध्यापकों ने आंदोलन भी किया, मगर बंसीलाल नहीं झुके। चुनावों में बंसीलाल को मास्टरों का गुस्सा झेलना पड़ा।

बिना प्रेस किए कपड़े पहनते थे बंसीलाल
चौधरी बंसीलाल की सादगी के बारे में तो कहना ही क्या वह मुख्यमंत्री बनने के बाद बिना प्रेस किए कपड़ों में दिख जाते थे। अगर कोई इस बारे में उनसे कुछ कहता तो सहज भाव से कह देते कि क्या बिना प्रेस किए कपड़े पहनने पर आप मुझे मुख्यमंत्री नहीं मानेंगे?

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हम तो चंडीगढ़ पहुंच जाएंगे, अब तुम दिल्ली जाकर दिखाओ
सत्तर-अस्सी के दशक में सतलुज-युमना लिंक नगर (एसवाईएल) नहर खुदाई का विवाद जोरों पर था। पंजाब के नेताओं ने सीएम बंसीलाल पर टिप्पणी की थी कि हम आपको चंडीगढ़ नहीं आने देंगे। तब हरियाणा से चंडीगढ़ जाने का मुख्य रास्ता पंजाब से होकर गुजरता था। चौ. बंसीलाल ने रातोंरात सड़क बनवा दी थी, जो हरियाणा से सीधे पंचकुला होते हुए चंडीगढ़ जाती थी। इस बाबत बंसीलाल ने पंजाब के नेताओं से कहा था, हम तो चंडीगढ़ पहुंच जाएंगे, अब तुम दिल्ली जाकर दिखाओ।

चौधरी बंसीलाल का मानवीय पक्ष
बंसीलाल का एक वाक्या ऐसा भी बताते हैं कि अंबाला के पास एक बूढ़ी महिला ने बंसीलाल की कार को रोक लिया। कारण पूछने पर पता चला कि उसके बेटे को फांसी की सज़ा हो गई है और उसकी दया याचिका अस्वीकार कर दी गई है। दो दिनों में उसे फांसी दी जानी है। बंसी लाल इस मामले में कुछ ख़ास नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने कार को आगे बढ़ाने का आदेश दिया। बंसी लाल की आंखें भरी हुई थीं। अगले दिन अख़बारों में छपा कि वो लड़का जेल से भाग निकला है। कहा जाता है कि ये मात्र संयोग नही था।


इमरजेंसी का खामियाजा, जनता की नजर में बंसीलाल बने खलनायक
एमरजेंसी में हरियाणा में जो कुछ हुआ उसने बंसीलाल को खलनायक बना दिया। हरियाणा की जेलें राजनैतिक कैदियों से ठसाठस भरी हुई थी देश के विभिन्न हिस्सों से कैदी हरियाणा की जेलों में लाकर डाले गए। सबसे बड़ा खामियाजा तो इमरजेंसी में केंद्र सरकार के नसबंदी के आदेश ने तो जैसे हरियाणा में भूचाल ला दिया लोगों की जबरन पकड़ पकड़कर नसबंदी की गई। इमरजेंसी में एक नारा तो बच्चे बच्चे की जबान पर था कि नसबंदी के तीन दलाल इंदिरा, संजय, बंसीलाल।

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नसबंदी का खौफ लोगों में इतना था कि लोग घरों में न रहकर खेतों में ही पड़े रहते थे। पहली पारी में 7 वर्ष 192 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद चौ. बंसीलाल ने 1977 में लोकसभा चुनाव लड़ा मगर इमरजेंसी के कारण गुस्साए लोगों ने बंसीलाल के खिलाफ मतदान किया और बंसीलाल भिवानी लोकसभा सीट से लोकदल उम्मीदवार चंद्रावती के हाथों हार गए।

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जब बंसीलाल को हथकड़ी लगा अदालत ले जाया गया
इमरजेंसी के बाद चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। सरकार बनते ही चौधरी बंसीलाल के एक साथ 75 स्थानों पर छापेमारी की गई। इसके अलावा बताया जाता है कि कई अन्य केसों बंसीलाल को गिरफ्तार किया गया साथ ही हथकड़ी डालकर खुली जीप में भिवानी कोर्ट भी लाया गया। जहां बंसीलाल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। बाद में सभी केस फर्जी पाए गए।

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