सोमवार को देवों के देव महादेव, जिन्हें भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है, बहुत ही भोले होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष पूजन की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें तो भक्त की मन से की गई क्षणिक भक्ति से ही प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है।
अगर आप भी सावन के सोमवार का व्रत करके भगवान शिव की भक्ति और कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह कथा आपके लिए बहुत लाभकारी हो सकती है। इस कथा को सुनने और मानने से भोलेनाथ की कृपा आपके ऊपर बनी रहेगी, और आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
कथा के अनुसार, शिव भक्तों की सरल और सच्ची भक्ति ही भगवान शिव को अधिक प्रिय है, और इसी भक्ति से वे अपनी कृपा बरसाते हैं। इसलिए, यदि आप भी शिव की भक्ति में रमित हैं तो सावन के सोमवार का व्रत इस कथा के साथ करें, और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करें।
साहूकार को मिला पुत्र-प्राप्ति का वरदान, लेकिन शर्त भी रही!
एक साहूकार, जो धन्य था लेकिन संतान की कमी के कारण दुखी था, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए हर सोमवार को व्रत रखता था और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था। उसकी भक्ति और तपस्या से प्रभावित होकर माता पार्वती ने भगवान शिव से साहूकार की इच्छा पूरी करने की विनती की।
मां पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, लेकिन साथ ही एक शर्त भी रखी। भगवान शिव ने कहा, “हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जो भाग्य में होता है, वही उसे भोगना पड़ता है।”

साथ ही, भगवान शिव ने यह भी बताया कि बालक को 12 वर्ष तक ही जीवित रहने का वरदान होगा। यह वचन देते हुए उन्होंने साहूकार को सचेत किया कि यह संतान का सुख केवल एक सीमित समय के लिए होगा।
यह घटना नगरवासियों के बीच चर्चा का विषय बन गई और लोगों ने साहूकार की भक्ति को सराहा, लेकिन यह भी समझा कि जीवन में भाग्य और कर्मों का महत्व है।
साहूकार के पुत्र की अनदेखी शादी, नगर के राजा की योजना का पर्दाफाश
एक साहूकार की संतान, जो भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा से पैदा हुआ था, अब 11 वर्ष का हो चुका था। साहूकार ने उसे काशी भेजने का निश्चय किया और विद्या की प्राप्ति के लिए मामा के साथ मार्ग पर भेज दिया। साहूकार ने मामा को पर्याप्त धन दिया और आदेश दिया कि वे रास्ते में यज्ञ कराते जाएं और ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा दें।
यात्रा के दौरान, वे एक नगर पहुंचे, जहाँ नगर के राजा की बेटी का विवाह होना था। यह विवाह एक अजीब स्थिति में था, क्योंकि विवाह का प्रस्तावित राजकुमार एक आंख से काना था। राजा को डर था कि यह राजकुमार की शारीरिक कमी को देखकर राजकुमारी के परिवार वाले विवाह से इंकार कर सकते हैं, इसलिये राजा ने एक साहूकार के पुत्र को दूल्हा बना दिया।
राजा ने साहूकार के पुत्र को दूल्हे के वस्त्र पहनाए और राजकुमारी के साथ उसकी शादी करवा दी। विवाह के बाद राजा ने दूल्हे को धन देकर विदा करने का मन बनाया और राजकुमारी को अपने नगर वापस ले जाने की योजना बनाई।
यह स्थिति साहूकार के पुत्र के लिए एक बड़ा आश्चर्य थी, क्योंकि न तो वह विवाह करने का इच्छुक था और न ही उसे इस योजना का कोई अंदाज़ा था।
यह घटना नगरवासियों के लिए एक अनोखा उदाहरण बनी, जिसमें राजा की चालाकी और साहूकार के पुत्र की निरुपाय स्थिति के बीच एक अजीब स्थिति उत्पन्न हुई।
साहूकार के पुत्र की दुखद मृत्यु, भगवान शिव की कृपा से कष्ट दूर

साहूकार का ईमानदार पुत्र, जो अपनी यात्रा पर काशी गया था, ने राजकुमारी के दुपट्टे पर एक संदेश लिखा, जिसमें उसने खुलासा किया कि उसका विवाह तो राजकुमारी से हुआ है, लेकिन असली राजकुमार काना था। इस संदेश को पढ़कर राजकुमारी ने अपने माता-पिता को सूचित किया, जिससे राजा ने विवाह को रद्द कर दिया और बारात वापस लौट गई। साहूकार के पुत्र की ईमानदारी ने न केवल उसे सम्मान दिलवाया, बल्कि वह राजकुमारी को भी सच्चाई का पता चला।
इसी बीच साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी पहुंचे, जहां उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। जैसे ही बालक का 12वां वर्ष पूरा हुआ, उसने मामा से कहा कि उसे थोड़ी तबीयत ठीक नहीं लग रही। मामा ने उसे आराम करने की सलाह दी, लेकिन थोड़ी देर बाद बालक के प्राण पखेरू उड़ गए, जो भगवान शिव की दी हुई भविष्यवाणी के अनुसार था।
मामा ने अपने भांजे की मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त किया। इसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे। पार्वती माता ने भगवान शिव से कहा, “स्वामी, मुझे इसके विलाप की आवाज़ सहन नहीं हो रही, आप इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें।”
माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान शिव ने साहूकार के पुत्र को जीवित करने का वचन दिया। भगवान शिव की अनुकंपा से साहूकार का पुत्र फिर से जीवित हो गया और उसकी मृत्यु के बाद के कष्ट दूर हो गए। इस घटना ने यह साबित किया कि भगवान शिव की कृपा से किसी भी कठिन परिस्थिति का समाधान संभव है, और संतान की भक्ति और कर्म से जुड़ी हर परिस्थिति में ईश्वर का हाथ साथ होता है।
शिवजी की कृपा से मृत बालक को मिला जीवन, माता-पार्वती के अनुरोध पर हुआ चमत्कारी घटनाक्रम
शिवजी ने एक मृत बालक को जीवन का वरदान दिया, जो एक साहूकार का पुत्र था, जिसे 12 वर्ष की आयु तक जीने का वरदान दिया गया था। जब उसकी आयु पूरी हो गई और वह मृत हो गया, तो माता पार्वती ने महादेव से पुनः उसे जीवन देने की प्रार्थना की।
माता पार्वती ने कहा कि अगर इस बालक को जीवित नहीं किया गया, तो इसके माता-पिता भी उनके वियोग में तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने बालक को जीवन का वरदान दिया। बालक जीवित हुआ और शिक्षा पूरी करने के बाद अपने मामा के साथ घर लौटने के लिए निकल पड़ा।
जब वह नगर में पहुंचा, जहां उसका विवाह हुआ था, तो उसके ससुर ने उसे पहचान लिया और उसे महल में आमंत्रित कर अपनी पुत्री को विदा किया।
इस चमत्कारी घटनाक्रम से यह सिद्ध हुआ कि शिवजी की कृपा से जीवन में कोई भी मुश्किल असंभव नहीं है।
शिवजी की कृपा से साहूकार के पुत्र को मिली लंबी आयु, सोमवार व्रत का महत्त्व
साहूकार और उसकी पत्नी अपने पुत्र की मृत्यु की खबर से भयभीत थे। वे इस वचन पर अडिग थे कि यदि उन्हें अपने बेटे के निधन का समाचार मिला तो वे भी प्राण त्याग देंगे। लेकिन जब उन्हें यह सुखद समाचार मिला कि उनका बेटा जीवित हो गया है, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
उसी रात, भगवान शिव ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा, “हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।” इसके साथ ही भगवान शिव ने यह भी बताया कि जो व्यक्ति सोमवार का व्रत करता है, कथा सुनता या पढ़ता है, उसके सभी दुख दूर होते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि भगवान शिव की पूजा और व्रत से व्यक्ति को जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य प्राप्त होता है। सोमवार का व्रत विशेष रूप से भक्तों के लिए शुभ और कल्याणकारी माना जाता है।