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पिता के निधन से टूटे विजेंदर पहुंचे वृंदावन, पत्नी ने बताई दिल की बात

धर्म

भिवानी के बॉक्सर विजेंदर सिंह अपने परिवार संग वृंदावन में प्रेमानंद महाराज के दर्शन को पहुंचे
पत्नी अर्चना सिंह ने डर और नकारात्मक सोच की समस्या पर महाराज से मार्गदर्शन मांगा
प्रेमानंद महाराज ने ‘राधा-राधा’ नाम के जाप को बताया समाधान, कहा—नकारात्मक सोच ही बनती है भय की जड़


Premanand Maharaj: हरियाणा के भिवानी जिले के अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर और भाजपा नेता विजेंदर सिंह इन दिनों व्यक्तिगत जीवन में भावनात्मक दौर से गुजर रहे हैं। चार महीने पहले उनके पिता महिपाल सिंह का निधन हो गया, जिसने पूरे परिवार को भीतर से तोड़ दिया। हाल ही में विजेंदर सिंह अपनी पत्नी अर्चना सिंह और बच्चों के साथ वृंदावन पहुंचे, जहां उन्होंने संत प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की।

यह मुलाकात केवल धार्मिक नहीं बल्कि एक भावनात्मक संवाद बन गई। बातचीत की शुरुआत विजेंदर ने महाराज जी से उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछकर की, जिस पर महाराज ने कहा—”हम ठीक हैं।” इसके बाद विजेंदर ने कहा कि उनकी पत्नी आपसे कुछ पूछना चाहती हैं। अर्चना सिंह ने महाराज से बड़ी विनम्रता से अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा—“मुझे जरा-जरा सी बातों पर डर लगता है, जबकि डरने की कोई बात भी नहीं होती।”

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इस पर महाराज ने बड़ी शांति से उत्तर देते हुए कहा—“हमारी नकारात्मक सोच जब बढ़ने लगती है तो भय, चिंता और शोक जन्म लेते हैं। इसी को नष्ट करने के लिए राधा-राधा नाम का जाप करें।” उन्होंने समझाया कि “जैसे मेरी दोनों किडनियां खराब हैं, परंतु मैं नकारात्मक नहीं सोचता, इसलिए मैं स्वस्थ जैसा रहता हूं।” उन्होंने विजेंदर से सवाल किया—“क्या आपको लगता है मैं बीमार हूं? मैं तो स्वस्थ पुरुष जैसा दिखता हूं, यही है राधा नाम का प्रभाव।”

महाराज की यह बात न केवल विजेंदर के परिवार के लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो डर, चिंता और नकारात्मक सोच से जूझ रहे हैं। विजेंदर सिंह की पत्नी अर्चना सिंह ने इस विचार को गंभीरता से लिया और महाराज के बताए मार्ग पर चलने की बात कही।

गौरतलब है कि विजेंदर सिंह के पिता महिपाल सिंह हरियाणा रोडवेज में ड्राइवर रहे हैं और 2019 में रिटायर हुए थे। उन्होंने ओवरटाइम करके अपने बेटे को अंतरराष्ट्रीय मुकाम तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिता के निधन के बाद विजेंदर कई बार अपने इंटरव्यूज़ में कह चुके हैं कि “पिता के बलिदानों ने ही मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है।”

अब जब जीवन की कठिनाई में संत का आश्रय लिया गया है, यह दर्शाता है कि संघर्ष चाहे व्यक्तिगत हो या मानसिक—समाधान आत्मा और श्रद्धा में ही मिलता है।