Religion: हर साल कुल 24 एकादशी व्रत आते हैं। हर महीने दो एकादशी आती हैं। हर एकादशी का अलग-अलग महत्व शास्त्रों में वर्णित है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का भी विशेष महत्व है। जन्माष्टमी के बाद पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। अजा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा और उपासना की जाती है।
इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख समृद्धि आती है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ गुरुवार 29 अगस्त को सुबह 1 बजकर 19 मिनट से 30 अगस्त को सुबह 01 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। उदया तिथि के अनुसार अजा एकादशी व्रत 29 अगस्त 2024 को किया जाएगा।
अजा एकादशी व्रत कथा
अजा एकादशी की कथा राजा हरिशचन्द्र से जुड़ी हुई है। राजा हरिशचन्द्र अत्यन्त वीर प्रतापी और सत्यवादी राजा थे। राजा हरिशचन्द्र ने सत्यता एवं वचन पूर्ति हेतु अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया था और स्वयं भी एक चाण्डाल का सेवक बन गए थे। जिसके बाद गौतम ऋषि ने उन्हें इस संकट से मुक्त होने का उपाय बताया। उन्होंने राजा हरिशचन्द्र को अजा एकादशी व्रत के बारे में बताया। उनके कहे अनुसार राजा हरिशचन्द्र ने अजा एकादशी का व्रत पूरे विधि-पूर्वक से किया।
जिसके बाद उनको अपना राज्य वापस मिल गया और अन्त समय में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को चले गए । यह सब अजा एकादशी व्रत के कारण हुआ था। बता दें कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक करते हैं तथा रात्रि में जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और साथ ही अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है।
अजा एकादशी व्रत पूजा विधि
अजा एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी स्नान करें और साफ-सुथरें वस्त्र पहनें। इसके बाद पूजा स्थल को भी साफ-सुथरा कर दें और सिंहासन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति रखें। पूजा शुरू करने से पहले अपने गुरु या वरिष्ठ व्यक्तियों का आशीर्वाद लें। भगवान विष्णु के सामने धूप और दीप जलाएं। जिसके बाद भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते और फूल अर्पित करें। भगवान विष्णु के सामने अपने व्रत का संकल्प करते हुए “ॐ विष्णवे नमः” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। इसके बाद भगवान को प्रसाद अर्पित करें। अजा एकादशी की विशेष कथा जरूर पढ़े क्योंकि यह कथा भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के महत्व को स्पष्ट करती है।