मध्यप्रदेश में भाजपा संगठन चुनाव को लेकर मचा हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा है। 15 जनवरी तक प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो जाना था, लेकिन जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर मची घमासान ने इसे और जटिल बना दिया है। अब दिल्ली में इस विवाद का समाधान किया जाएगा, क्योंकि मंत्री, सांसद और विधायक के बीच समन्वय की कमी के चलते जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा अटक गई है।
संगठन चुनाव में देरी की वजह
बीते 5 जनवरी तक जिलाध्यक्षों की घोषणा हो जानी चाहिए थी, लेकिन नामों पर सहमति नहीं बन पाई। सूत्रों के मुताबिक, 2 जनवरी को 40 जिलों में सहमति बन गई थी, लेकिन कुछ जिलों में विवाद के चलते अब तक नामों की सूची फाइनल नहीं हो पाई है। मप्र भाजपा के बड़े जिलों जैसे भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, ग्वालियर ग्रामीण, और सतना में नामों की घोषणा अभी बाकी है। यह स्थिति कार्यकर्ताओं में असंतोष का कारण बन सकती है, और यदि जल्द ही घोषणा नहीं होती तो हंगामा हो सकता है।
कई दिग्गज नेताओं के बीच तनाव
ग्वालियर-चंबल, इंदौर, और रीवा जैसे प्रमुख जिलों में केंद्रीय मंत्री और स्थानीय नेताओं के बीच गहरी खींचतान है। नेताओं का दबाव इतना बढ़ चुका है कि इन जिलों में केंद्रीय नेतृत्व को ही निर्णय लेना पड़ेगा। यहां तक कि महिला नेत्रियों को जिम्मेदारी दिए जाने की संभावना भी जताई जा रही है, जो इस पूरे घटनाक्रम को और दिलचस्प बना देती है।
आखिरकार क्या होगा अगला कदम?
कहा जा रहा है कि अब तक हुए विवादों के बीच, प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को दिल्ली से निर्देश आ सकते हैं, ताकि प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया बिना किसी और देरी के शुरू हो सके। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के विवाद को सुलझा पाना इतना आसान होगा? क्या मप्र भाजपा, जो पहले संगठन पर्व में अव्वल रही है, अब अपने संगठन चुनाव में पिछड़ते हुए नजर आएगी?