➤ छात्रों ने VC पर कार्रवाई की मांग छोड़ी, केवल पारदर्शी जांच पर बनी सहमति
➤ मामले को तूल न देकर सरकार ने चलाया ‘सॉफ्ट डिप्लोमेसी’ का फार्मूला
➤ नेताओं की अपील और प्रशासन की बैकडोर बातचीत से बना मिनटों में ‘समझौता’
अखिलेश महाजन
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) हिसार में पिछले कई दिनों से VC को हटाने की मांग को लेकर चल रहा छात्र धरना अचानक खत्म हो गया। हैरानी की बात यह रही कि VC पर सीधी कार्रवाई की कोई घोषणा नहीं हुई, फिर भी छात्र संगठनों ने धरना मिनटों में समेट दिया।
HAU का यह आंदोलन इसलिए भी अहम था क्योंकि यह राजनीति से ऊपर एक छात्र एकता का प्रतीक बन गया था। पहली बार सभी विचारधाराओं के छात्र संगठन एक मंच पर आए थे और VC के खिलाफ संगठित तरीके से आवाज़ उठाई थी। हालांकि आंदोलन का अचानक समाप्त हो जाना यह भी दर्शाता है कि सरकार और प्रशासन ने ‘प्रेशर मैनेजमेंट’ और ‘डायलॉग डिप्लोमेसी’ में बाज़ी मार ली।
वहीं, VC हटाओ आंदोलन की आड़ में सुलग रहे धरने को छात्रों का अचानक बिना किसी शर्त के समाप्त करना, छात्र नेताओं के सुर बदल जाना, यह सवाल पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। अब सवाल ये उठता है कि बिना VC पर प्रत्यक्ष कार्यवाही के छात्र आखिर क्यों मान गए? क्या सरकार ने कोई दबाव बनाया या फिर हिसार के स्थानीय सियासी समीकरणों ने कोई नई चाल चली? हमने इस घटनाक्रम की परत-दर-परत पड़ताल की है और जानने की कोशिश की है कि पर्दे के पीछे क्या चला……
टाइमलाइन: HAU आंदोलन का घटनाक्रम
- 22 जून VC पर वित्तीय गड़बड़ी और नियुक्तियों में धांधली के आरोपों को लेकर छात्रों का धरना शुरू
- 25 जून HAU कैंपस में छात्र पंचायत, VC के इस्तीफे की खुली मांग
- 28 जून सभी कॉलेजों के छात्र संगठनों ने महापंचायत की घोषणा की
- 30 जून VC कार्यालय के बाहर धरना उग्र, विश्वविद्यालय प्रशासन सख्ती की तैयारी में
- 1 जुलाई सुबह छात्र नेताओं और प्रशासन के बीच ‘गोपनीय वार्ता’ शुरू
- 1 जुलाई शाम समझौता हो गया, VC हटाने की मांग पर नरमी, जांच और संवाद समिति पर सहमति
- 2 जुलाई सुबह धरना हटा, कैंपस सामान्य हुआ
क्या हुआ समझौता? इनसाइड स्टोरी
विश्वविद्यालय और प्रशासन ने यह भांप लिया था कि VC को हटाने की सीधी घोषणा फिलहाल असंभव है, क्योंकि इससे सरकार की छवि पर असर पड़ सकता है। इसलिए “पारदर्शी जांच और जवाबदेह समिति” का रास्ता अपनाया गया।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों को यह आश्वासन दिया कि
-VC पर लगे सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी
-छात्रों की मांगों पर बनी समिति में छात्र प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा
-भविष्य में किसी भी नियुक्ति या नीतिगत फैसले में पारदर्शिता रखी जाएगी
-जो छात्र आंदोलन में शामिल हुए, उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होगी-
- छात्र क्यों मान गए?
ज्यादा लंबा खिंचने पर आंदोलन का असर कमज़ोर पड़ता
छात्र प्रतिनिधियों को भरोसा मिला कि जांच के बाद VC खुद हटाए जा सकते हैं
गर्मी और परीक्षाओं के चलते छात्र वर्ग में भी असहजता थी
नेताओं की ‘क्लोज्ड डोर अपील’ ने माहौल शांत किया
जयभगवान शर्मा, छात्र नेता (MA Final):
“हमारी मूल मांग जवाबदेही थी। जब VC के खिलाफ जांच तय हो गई और प्रशासन ने लिखित में समिति में छात्र प्रतिनिधि की बात मानी, तो हमने जनहित में आंदोलन खत्म करने का फैसला किया।”
सरकार के प्रतिनिधि, शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर:
“विश्वविद्यालय के माहौल को सामान्य करना जरूरी था। छात्र भी हमारे बच्चे हैं, उन्हें सुना गया और उनकी बातों पर अमल होगा। VC पर जो आरोप हैं, उन पर जांच निष्पक्ष होगी।”
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला:
“VC के खिलाफ जांच मात्र से जनता को संतोष नहीं होगा, कार्रवाई चाहिए। छात्रों का आंदोलन जायज था। सरकार को जल्द निर्णय लेना चाहिए।”
ABVP नेता विवेक राठी:
“VC को बचाने का प्रयास किया गया है। हम निगरानी रखेंगे कि जांच सिर्फ कागजों में न रह जाए।”स्थानीय विधायक की भूमिका
विधायक रणधीर पनिहारने शुरू से ही इस आंदोलन को “अंदरखाते सुलझाने” का प्रयास किया। उन्होंने छात्र नेताओं को व्यक्तिगत तौर पर भरोसा दिलाया कि सरकार VC की भूमिका की जांच कराएगी यह भी कहा गया कि “अगर आरोप सही पाए जाते हैं तो कार्रवाई तय है, लेकिन ‘अभी का हंगामा’ विश्वविद्यालय की साख पर असर डाल सकता है” छात्र नेताओं ने भी विधायक से जुड़े कुछ भरोसेमंद पूर्व छात्रों के माध्यम से दबे स्वर में स्वीकार किया कि “कई बातें अनौपचारिक रूप से तय की गईं”
सरकार का दबाव और रणनीति
सरकार नहीं चाहती थी कि इस विवाद से VC को हटाने की परंपरा शुरू हो जाए, जिससे भविष्य में राजनीतिक दबाव से प्रशासनिक निर्णय प्रभावित हों। इसलिए एक मध्यवर्ती रास्ता निकाला गया मसलन VC पर आरोपों की निष्पक्ष जांच का एलान, छात्रों की मांगों पर बनी कमेटी में छात्र प्रतिनिधित्व की अनुमति, कोई कार्रवाई नहीं, लेकिन ‘सम्भावना छोड़ दी गई’, यह वही कूटनीतिक चाल थी, जिससे छात्रों को आंदोलन का ‘आदर्श अंत’ मिला और सरकार को ‘संवैधानिक प्रक्रिया’ की आड़।