Guru Gobind Singh Jayanti 2024

Guru Gobind Singh Jayanti 2024 : सिखों के दसवें और अंतिम गुरु की जयंती कल, जानिए इनसें जुड़ी कुछ खास बातें

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हर साल भारत में सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जयंती खूब धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। पंजाब के सबसे बड़े त्योहारों में से एक गुरु गोबिंद सिंह जंयती को माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह की जंयती सिखों के अंतिम और दसवें मानव गुरु के तौर पर मनाई जाती है। गुरु गोबिंद सिंह जी एक योद्धा और कवि के साथ-साथ दार्शनिक भी थे। उनके विचारों और शिक्षाओं को मानते हुए, सिख समुदाय इनकी पूजा करता है। गुरु गोबिंद सिंह जंयती पर लोग उनकी बहादुरी के किस्से सुनाते है। उनकी शिक्षाओं और दर्शन को सीखते है साथ ही लोग गुरु गोबिंद के दिखाए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करते है।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती 17 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। यह सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की जंयती है। गुरु गोबिंद सिंह का जन्म जूलियन कैलेंडर के मुताबिक 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना शहर में हुआ था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर थे, जो सिख धर्म के नौवें गुरु थे।

गुरु गोबिंद सिंह का जीवन

गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन में सिख धर्म के प्रचार-प्रसार और सिखों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापनी की, जो सिख धर्म का एक सैन्य संगठन है। गुरु गोबिंद सिंह ने मुगल सम्राट औंरगजेब के खिलाफ भी संघर्ष किया। उन्होंने औरंगजेब के धर्मांतरण के प्रयासों का विरोध किया और लोगों को धर्म की स्वतत्रंता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस्लाम को अपना धर्म न मानने के कारण गुरु गोबिंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया था। वहीं, गुरु गोबिंद सिंह की माता गुजरी थी। माना जाता है कि जिस स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था, उसे अब तख्त श्री हरिमंदर जी पटना साहिब के नाम से जाना जाता है। साल 1676 में बैसाखी के दिन नौ साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया।

खालसा पंथ की स्थापना

सन 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद साहब ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुयायी विधिवत् दीक्षा प्राप्त करते है। सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – “कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है”? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोविंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया, पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी तरह पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे ,तो उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

उसके बाद गुरु गोविंद ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दो-धारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा बनने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया, जिसके बाद उनका नाम गुरु गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कछैरा। तभी से सिख समुदाय अपने साथ – केश, कंघा, कड़ा, किरपान (कृपाण), कछैरा (कच्छा) रखते है।

गुरु गोबिंद सिंह का महत्व

गुर गोबिंद सिंह सिख धर्म के सबसे महत्वपूर्ण गुरुओं में से एक है। वे एक महान कवि, योद्धा, नेता और धर्मगुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह के दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। वह संस्कृत के अलावा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे। कई सारे ग्रंथों की रचना गुरु गोबिंद सिंह द्वारा की गई, जो समाज को काफी प्रभावित करती है। उन्होंने सिख धर्म को एक मजबूत और संगठित धर्म में बदल दिया। गुरु गोबिंद सिंह की जयंती सिख धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन, सिख मंदिरों में विशेष समारोह आयोजित किए जाते है और गुरु गोबिंद सिंह के जीवन और कार्यों को याद किया जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह के महत्वपूर्ण कार्य

1.खालसा पंथ की स्थापना

2.सिख धर्म के प्रचार-प्रसार

3.सिखों की रक्षा के लिए संघर्ष

4.मुगल सम्राट औरंगजेब के धर्मांतरण के प्रयासों का विरोध

5.लोगों को धर्म की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करना

गुरु गोबिंद सिंह का विवाह

गुरु गोबिंद सिंह का पहला विवाह 10 साला की उम्र में ही हो गया था। 21 जून, 1677 के दिन माता जीतो के साथ आनन्दपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में विवाह सम्पन्न हुआ था। गुरु गोबिंग सिंह और माता जीतो के 3 पुत्र हुए जिनके नाम जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह था। 17 साल की उम्र में दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ 4 अप्रैल, 1684 को आनन्दपुर में ही हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। उसके बाद 33 साल की उम्र में तीसरा विवाह 15 अप्रैल 1700 में माता साहिब देवन के साथ किया। वैसे तो उनकी कोई संतान नहीं थी, पर सिख पन्थ के पन्नों और गुरु गोबिंद सिंह के जीवन में उनका भी बहुत प्रभावशाली स्थान था। इस तरह से गुरु गोबिंद सिंह की कुल 3 शादियां हुई थी।

बहादुर शाह जफर के साथ गुरु गोविंद सिंह के रिश्ते

जब औरंगजेब की मृत्यु हुई, उसके के बाद बहादुरशाह को बादशाह बनाने में गुरु गोविंद सिंह ने मदद की थी। गुरु गोविंद और बहादुर शाह के आपस मे रिश्ते बहुत ही सकारात्मक और मीठे थे। जिसे देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खां डर गया। अपने डर को दूर करने के लिये उसने अपने दो आदमी गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन दो आदमियों ने ही गुरु साहब पर धोखे से वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 को गुरु गोविंद सिंह नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए।

उन्होंने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों के ईंट का जवाब पत्थर से दिया ।

गुरु गोविंद साहब द्वारा दिए गये उपदेश

गुरु गोविंद सिंह के दिए उपदेश आज भी खालसा पंथ और सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

1. बचन करके पालना – अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा।

2.किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना – किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।

3.कम करन विच दरीदार नहीं करना – काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।

4.गुरुबानी कंठ करनी – गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।

5.दसवंड देना – अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।

गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाएं

गुरु गोविंद सिंह ने न सिर्फ अपने महान उपदेशों के द्वारा लोगों को सही मार्गदर्शन दिया, बल्कि उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और अपराधों के खिलाफ भी विरोध किया। उनके द्वारा लिखी कुछ रचनाएं इस प्रकार से हैं। जाप साहिब, अकाल उत्सतत, बचित्र नाटक, चंडी चरित्र, जफर नामा और खालसा महिमा ये सभी गुरु गोबिंद जी द्वारा रचित रचनाएं है।

गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु

गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु 7 अक्तूबर 1708 को पंजाब के नांदेड़ शहर में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके चार पुत्र थे, जो खालसा पंथ के चार सिंह थे उन्होंने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया।