Haryana Politics : (राकेश भट्ट, चीफ एडिटर, सिटी तहलका) हरियाणा में लोकसभा चुनाव की सरगर्मिया चरम पर है। जाटलैंड कही जाने वाली सोनीपत लोकसभा सीट की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस ने यहां पर उम्मीदवार उतारने में जातीय समीकरण को दरकिनार तो किया है, लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के किसी समय गढ़ मानी जा रही इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने ब्राह्रमण और जाट का कॉम्बिनेशन कर सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति बनाई है। कांग्रेस से पहले उम्मीदवार उतारने वाली भाजपा ने यहां पर ब्राह्रमण कार्ड खेला है। पार्टी ने लोकसभा के उम्मीदवार के रूप में विधायक को चुनावी रण में उतारा है।
दिलचस्प यह है कि जाटलैंड में किस ब्राह्रमण को सबसे ज्यादा संख्या वाले जाट चुनेंगे, इसके संकेत वह लगातार दे रहे हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार पर बाहरी का ठप्पा विपक्ष लगा रहा है तो कांग्रेस के सटीक दांव पर भाजपा रणनीति बदलकर बड़ी रणनीति तैयार कर रही है। बता दें कि जाट वर्ग ने कांग्रेस और भाजपा से खड़े किस उम्मीदवार को भोज कराने की सोची है। साथ ही क्यों इस सीट पर चुनाव रोचक बना हुआ है। यहां भाजपा हैट्रिक लगाएगी या कांग्रेस वापसी करेगी।

बता दें कि जिला सोनीपत में जाटों की संख्या करीब 6 लाख है, लेकिन मुकाबला दो लाख आबादी वाले ब्राह्मण उम्मीदवारों के बीच देखने को मिल रहा है। भाजपा से विधायक मोहनलाल बड़ौली और कांग्रेस से सतपाल ब्रह्मचारी एक-दूसरे को टक्टर दे रहे हैं। इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार घोषित करने के बाद कांग्रेस को ये आशंका थी कि कहीं चुनाव जाट व नॉन जाट न चला जाए और कभी भाजपा को इसका फायदा मिल जाए। यहां की राजनीति जाट वोटरों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। वर्ष 1952 से 76 के बीच यह निर्वाचन क्षेत्र के अस्तित्व में नहीं रही। अभी तक 12 लोकसभा चुनावों में से 9 बार जाट ही यहां से सांसद चुना गया है।

इस लोकसभा सीट पर भाजपा हैट्रिक लगाने के प्रयास कर रही है, जबकि कांग्रेस पिछली दो बार की हार का बदला लेने के लिए चुनावी मैदान में उतरी है। हालांकि इस बार दोनों ही दलों को जीत के लिए कड़ी परीक्षा देनी पड़ सकती है। कांग्रेस उम्मीदवार सतपाल ब्रह्मचारी की अड़चनों की बात करें तो बड़े-बड़े दिग्गज केवल बाहरी कैंडिडेट होने के ठप्पे के कारण चुनाव शिकस्त का सामना कर चुके हैं। इनमें देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी शामिल हैं। अब भाजपा, जजपा और इनेलो ने सतपाल ब्रह्रमचारी को बाहरी बताकर उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल जिला जींद से हैं, लेकिन विपक्ष का दावा है कि वह पहले भी हरिद्वार में ही पाए जाते थे, न कि जींद में।

गत दिनों प्रचार के लिए सोनीपत पहुंचे जजपा नेता एवं हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने दावा किया था कि इस कांग्रेस के प्रत्याशी का आईडी प्रूफ ही उत्तराखंड का है। दरअसल विपक्ष बाहरी का मुद्दा उठाकर स्थानीय लोगों की अभी तक के चुनाव में वोटरों का ट्रेंड देखकर उन्हें जानकारी दे रहा है। इसके अलावा गुटबाजी भी सतपाल ब्रह्रमाचारी के आड़े आ रही है। यहां से टिकट की बांट जोह रहे कुलदीप शर्मा ब्रह्मचारी के प्रचार में उस तरह से शामिल नहीं दिख रहे। जिस हिसाब से पार्टी नेताओं को एकजुटता दिखानी चाहिए।

गत दिनों हाइवे के समीप कार्यक्रम में तो उन्होंने यह तक कह दिया था कि इस कार्यक्रम की जानकारी उन्हें नहीं दी गई थी, वह तो हुड्डा की वजह से कार्यक्रम में शामिल होने चले आए। इस सीट पर ब्रह्चारी के पक्ष में हुड्डा का करीबी होना और पूर्व मुख्यमंत्री की यहां के जाट वोटरों पर पकड़ होना माना जाता है। यानि जाट वोटर अगर ब्राह्रमण वोटरों के बंटने के बाद ब्रहमचारी पर जाता है तो उनकी राह काफी आसान बना सकता है। इसके अलावा जींद से जुड़ाव और इनके आश्रम से हजारों वोटरों का जुड़ा होना भी इनके पक्ष में जा रहा है।
वहीं भाजपा प्रत्याशी मोहनलाल बड़ौली की अड़चनों की बात करें तो ग्रामीणों खासकर जाटों की नाराजगी उनकी परेशानी की सबसे बड़ी वजह है। अगर इस सबसे बड़े वोट बैंक को नहीं मनाया गया तो उन्हें खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसी तरह से भाजपा में गुटबाजी भी इस सीट पर दिख रही है। पूर्व सांसद रमेश कौशिक के समर्थक और उनसे जुड़े नेता मोहनलाल बड़ौली के साथ नहीं लगे हैं। यह भी भाजपा उम्मीदवार के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

भाजपा प्रत्याशी मोहनलाल बड़ौली के पक्ष में जींद और सोनीपत का शहरी वोटर दिख रहा है। शहरी वोटर के अलावा मोदी के समर्थक भी यहां पर काफी संख्या में हैं। जब सिटी तहलका ने यहां पर कई ग्राउंड रिपोर्ट की तो बहुत से लोग यह बोलते नजर आए कि उम्मीदवार कौन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह तो मोदी के नाम पर ही मतदान करेंगे। उधर सूत्रों का कहना है कि जाटों की नाराजगी को लेकर इनपुट मिलने के बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने एक नई योजना तैयार की है। जिसके चलते आरएसएस के कार्यकर्ता लोगों से चुनाव तक घर-घर जाकर संपर्क करेंगे। इस कड़ी में लोगों के बीच मोदी के काम व राष्ट्रहितों पर चर्चा की जाएगी। ऐसे में जाहिर है कि सोनीपत लोकसभा पर दिलचस्प मुकाबला बना हुआ है। चुनाव किसी भी करवट जा सकता है।

सोनीपत लोकसभा पर जातीय समीकरण
कुल मतदाता 11. 75 लाख
जाट 5.58 लाख
ब्राह्रमण 2.45 लाख
एससी 2.15 लाख
ओबीसी 1.77 लाख
सिख 31 हजार
मुस्लिम 27 हजार
गुर्जर 10 हजार
पंजाबी 1.32 लाख
वैश्य 1.10 लाख

सोनीपत लोकसभा सीट से कब कौन बना सांसद
वर्ष 1977 मुख्तियार मलिक जनता पार्टी
वर्ष 1980 देवीलाल जनता दल सेक्युलर
वर्ष 1984 धर्मपाल मलिक कांग्रेस
वर्ष 1989 कपिल देव शास्त्री जनता दल
वर्ष 1991 धर्मपाल मलिक कांग्रेस
वर्ष 1996 अरविंद शर्मा निर्दलीय
वर्ष 1998 किशन सिंह सांगवान
वर्ष 2004 किशन सिंह सांगवान भाजपा
वर्ष 2009 जितेंद्र सिंह मलिक कांग्रेस
वर्ष 2014 रमेश कौशिक भाजपा
वर्ष 2019 रमेश कौशिक भाजपा

वर्ष 1984 में धर्मपाल ने देवीलाल को हराया था। वर्ष 1996 में डॉ. अरविंद शर्मा पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार जीते। वर्ष 2014 में जींद को इस लोकसभा में पहली बार शामिल किया गया।