ब्रजभूमि के धार्मिक स्थलों में से एक, अलीगढ़ का गौमत गांव अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम यहां गाय चराने आया करते थे। यह मंदिर कृष्ण-बलराम की गोपाल लीलाओं का गवाह है।
मंदिर का इतिहास और संरचना
यह मंदिर लगभग 500-600 साल पुराना बताया जाता है। मंदिर के मुख्य पुजारी श्याम अग्निहोत्री के अनुसार, इसे भामाशाह के वंशज गैलाशाह द्वारा बनवाया गया था। मंदिर का निर्माण राजस्थान के जयपुर से आए कारीगरों ने किया था। इसकी अनोखी वास्तुकला और नक्काशी राजस्थान की शैली को दर्शाती है।
मंदिर में दाऊजी (बलराम) और उनकी माता रेवती जी की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। श्रद्धालु यहां पूजा-पाठ के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करते हैं।
गौमत गांव का महत्व
गौमत गांव का पुराना नाम गऊ मठ था, जो एक ऊंचाई पर बसा था। यह स्थान पहले घने जंगल और तालाब से घिरा हुआ था। ब्रज चौरासी कोस यात्रा का यह मुख्य पड़ाव हुआ करता था। हालांकि, चकबंदी के बाद यह गांव मुख्य मार्ग से अलग हो गया।
मन्नत और चांदी का सतिया चढ़ाने की परंपरा
मंदिर के प्रबंधक रविंद्र स्वरूप मित्तल के अनुसार, यहां भक्त अपनी मन्नत मांगने के बाद मंदिर की मूर्तियों के पीछे गाय के गोबर से सतिया (स्वस्तिक) बनाते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में चांदी का सतिया चढ़ाते हैं।
देव छठ पर विशाल मेला
हर साल देव छठ के अवसर पर मंदिर परिसर में विशाल मेले का आयोजन होता है। इसमें राजस्थान, हरियाणा और अन्य राज्यों से लाखों श्रद्धालु आते हैं।
दाऊजी और बलराम की ऐतिहासिक मान्यता
मुख्य पुजारी ने बताया कि गौमत ब्रज की सीमा का अंतिम गांव है। भगवान श्रीकृष्ण और बलराम यहां चरवाहों के साथ आते थे। उनका यह स्थान अंतिम पड़ाव माना जाता है। इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल की ऊर्जा हर भक्त को आत्मिक शांति प्रदान करती है।
गौमत का यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी ऐतिहासिक धरोहर और अनोखी परंपराओं के लिए भी जाना जाता है। भगवान दाऊजी और उनकी मां रेवती जी की इस भूमि पर भक्तों की श्रद्धा हर वर्ष बढ़ती जा रही है।