दिल्ली मार्च के लिए शंभू बॉर्डर पर डटे किसानों को वापस लौटना पड़ा। किसान नेता सरवन सिंह ने बताया कि प्रदर्शन के दौरान कई किसान घायल हो गए, जिसके कारण जत्थे को पीछे हटाने का निर्णय लिया गया। उन्होंने आगे बताया कि हरियाणा पुलिस से बातचीत के बाद उनकी मांगों का पत्र सौंपा गया है। केंद्र सरकार को एक दिन का समय दिया गया है। अगर केंद्र सरकार 7 दिसंबर तक वार्ता नहीं करती तो 8 दिसंबर को दोपहर 12 बजे 101 किसानों का जत्था फिर से दिल्ली कूच करेगा।
प्रदर्शन के दौरान स्थिति तनावपूर्ण बनी रही। पुलिस के कड़े सुरक्षा बंदोबस्त और घायलों की बढ़ती संख्या के कारण किसान नेताओं ने फिलहाल मार्च को स्थगित कर दिया है। अब आंदोलन की अगली रणनीति पर विचार किया जा रहा है। बता दें कि अंबाला में 9 दिसंबर तक इंटरनेट बंद कर दिए गए है, ताकि स्थिति पर काबू पाया जा सके। कई किसान घायल हो गए है। शंभू बॉडर पर भारी पुलिस बल तैनात है। किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया जा रहा है। बता दें कि कंटीली तारें उखाड़कर किसान पुलिस के पास पहुंच गई है। जिसके बाद प्रशासन की तरफ से किसानों को बार-बार चेतावनी दी जा रही है।
सरवन सिंह पंधेर ने क्या कहा
इस जत्थे का नेतृत्व किसान नेता सरवन सिंह पंधेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल करेंगे। पंधेर ने कहा कि किसानों को नमक दिया गया है ताकि उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए तो इसे चाटने से सांस लेने में दिक्कत ना हो। साथ ही उन्होंने कहा कि यह जत्था देश के किसानों-मजदूरों के लिए है और इसे गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस को समर्पित किया गया है। उन्होंने कहा, “हम निहत्थे हैं और देश के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
दिल्ली में एंट्री पर रोक
दिल्ली पुलिस और हरियाणा पुलिस ने किसानों के मार्च को लेकर सुरक्षा कड़ी की हुई है। शंभू बॉर्डर पर धारा 163 (पूर्व में धारा 144) लागू कर दी गई है और बैरिकेडिंग की गई है। अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है, ड्रोन से निगरानी रखी जाएगी और वाटर कैनन का इंतजाम भी किया गया है। बिना अनुमति के दिल्ली में प्रवेश करने की कोशिश करने वालों को रोका जाएगा।
किसानों की मांगें
किसान अपनी प्रमुख मांगों के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी, कृषि लोन माफी, पेंशन योजना, बिजली दरों में बढ़ोतरी न करने, पुलिस मामलों की वापसी, लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय, और 2020-21 में आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं।
अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि किसान इस बार सरकार के सामने किस तरह से अपनी ताकत दिखाएंगे और क्या सरकार किसानों की मागों को मान लेती है या नहीं?