➤ मणिमहेश यात्रा जन्माष्टमी से राधा-अष्टमी तक, 31 अगस्त को होगी समाप्त
➤ पहली बार प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के लिए डिपोजिट रिफंड स्कीम लागू
➤ श्रद्धालुओं के लिए फिटनेस टेस्ट अनिवार्य, हेलिकॉप्टर से भी कर सकेंगे यात्रा
उत्तर भारत की पावन मणिमहेश यात्रा का शुभारंभ आज (शनिवार) जन्माष्टमी पर्व पर छोटे शाही स्नान के साथ हो गया। यह यात्रा राधा-अष्टमी यानी 31 अगस्त तक चलेगी। यात्रा के पहले दिन लगभग 90 हजार श्रद्धालुओं के डल झील में डुबकी लगा चुके हैं।
यह पवित्र स्नान शुक्रवार रात 11:50 बजे से शुरू होकर शनिवार शाम 9:38 बजे तक चलेगा। मणिमहेश यात्रा में हिमाचल के अलावा पंजाब, हरियाणा, कश्मीर, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लाखों की संख्या में भगवान भोलेनाथ के भक्त पहुंचते हैं।

इस यात्रा में भाग लेने के लिए फिटनेस टेस्ट अनिवार्य किया गया है। समुद्र तल से 13,385 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश की यात्रा के दौरान ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिसके चलते पहले कई श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। मेडिकल टेस्ट में फिट श्रद्धालुओं को ही यात्रा की अनुमति दी जाएगी।
इस बार प्रशासन ने यात्रा को स्वच्छ और सुरक्षित बनाने के लिए कड़े इंतजाम किए हैं। राज्य सरकार ने पहली बार डिपोजिट रिफंड स्कीम लागू की है, जिसके तहत प्लास्टिक पैकेजिंग पर अतिरिक्त शुल्क लिया जाएगा और उपयोग के बाद प्लास्टिक वापस करने पर वह राशि श्रद्धालुओं को रिफंड की जाएगी। इससे गंदगी फैलने पर रोक लगेगी।

प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। इस बार 500 पुलिस जवान, 70 NDRF-SDRF के सदस्य और सर्च एंड रेस्क्यू टीम तैनात की गई है। इसके अलावा 100 अतिरिक्त शौचालय, पांच बड़े कैंप और लंगर की व्यवस्था भी की गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी शुरू की गई है। भरमौर से गौरीकुंड तक एक तरफ का किराया 3340 रुपए और होली से 4999 रुपए तय किया गया है। इसके अलावा श्रद्धालु घोड़े, कुल्ली या पैदल भी यात्रा कर सकते हैं।
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव मणिमहेश के कैलाश शिखर पर निवास करते हैं, जो डल झील से दिखाई देता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस यात्रा की शुरुआत 9वीं शताब्दी में हुई थी जब राजा साहिल वर्मन को भगवान शिव के दर्शन हुए और उन्होंने यहां मंदिर स्थापित किया। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मणिमहेश यात्रा करने से जीवन के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हिमाचल प्रदेश का चंबा जिला अपने प्राचीन आध्यात्मिक स्थलों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक है मणिमहेश झील, जो भरमौर से लगभग 21 किलोमीटर दूर बुद्धिल घाटी में स्थित है। समुद्र तल से करीब 13,000 फीट ऊंचाई पर स्थित यह झील भगवान शिव को समर्पित मानी जाती है और इसके ऊपर विराजमान कैलाश पर्वत (18,564 फीट) को शिव का निवास स्थान माना जाता है।
हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी को यहां विशाल मणिमहेश मेला आयोजित होता है। हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर झील के पवित्र जल में स्नान करते हैं और भगवान शिव के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। श्रद्धालु झील के चारों ओर तीन परिक्रमा करते हैं और झील के शांत जल में बर्फीली चोटियों का मनमोहक प्रतिबिंब देखते हैं।

स्थानीय लोककथाओं और मान्यताओं के अनुसार, कैलाश शिखर को अब तक कोई भी नहीं फतह कर पाया है। कहा जाता है कि एक बार एक गद्दी चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ शिखर चढ़ने का प्रयास कर रहा था, लेकिन असफल रहा और पत्थर का रूप धारण कर लिया। इसी तरह एक सर्प द्वारा भी चढ़ाई का प्रयास किया गया, लेकिन वह भी पत्थर बन गया। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि कैलाश शिखर केवल उन्हीं को दिखाई देता है जिनसे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, अन्यथा यह शिखर बादलों में छिपा रहता है।

यात्रा मार्ग भी उतना ही रोमांचक है। तीर्थयात्री लाहौल-स्पीति से कुगति पास, कांगड़ा व मंडी से कवारसी या जलसू पास, और चंबा से भरमौर होते हुए यहां पहुंचते हैं। हडसर से शुरू होने वाला पैदल मार्ग यात्रियों के लिए मुख्य रास्ता है। बीच में धंचो नामक स्थान पर तीर्थयात्री विश्राम करते हैं, जहां एक सुंदर झरना भी है।

मणिमहेश झील से थोड़ी दूरी पर गौरी कुंड और शिव क्रोत्री स्थित हैं। मान्यता है कि महिलाएं गौरी कुंड में स्नान करती हैं और पुरुष शिव क्रोत्री में। इसके बाद ही वे मणिमहेश झील के दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं।
मणिमहेश यात्रा केवल एक धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि हिमालय की अद्भुत सुंदरता और पौराणिक महत्व से जुड़ा एक ऐसा अनुभव है, जिसे हर श्रद्धालु जीवन में एक बार अवश्य पाना चाहता है।