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कालांवाली नगर पालिका चुनाव में BJP को बड़ा झटका, कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार की जीत

हरियाणा की बड़ी खबर

सिरसा की कालांवाली नगर पालिका चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को 1,029 वोटों से मिली करारी हार
कांग्रेस समर्थित महेश कुमार बने चेयरमैन, गोपाल कांडा की हलोपा ने भी भाजपा के खिलाफ किया समर्थन
बगावत, टिकट वितरण में अनियमितता और वोट खरीद फरोख्त के आरोप बने हार के मुख्य कारण

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हरियाणा में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सिरसा जिले की कालांवाली नगर पालिका चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है। यहां से कांग्रेस समर्थित महेश कुमार ने भाजपा उम्मीदवार सुनील कुमार उर्फ टिशू को 1,029 वोटों के अंतर से हराकर चेयरमैन पद पर कब्जा कर लिया। इस हार ने भाजपा के भीतर अंतर्कलह, टिकट वितरण में गड़बड़ी और पार्टी नेताओं की नाराजगी जैसे मुद्दों को फिर से उजागर कर दिया है।

भाजपा ने इस चुनाव को लेकर पूरी ताकत झोंकी थी। प्रचार के लिए 4 कैबिनेट मंत्री और एक सांसद को लगाया गया था। यहां तक कि ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री कृष्णलाल पंवार स्वयं उम्मीदवार के कार्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे थे। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद स्थानीय असंतोष और पार्टी में बगावत हार का कारण बनी।

विशेष बात यह रही कि सिरसा से विधायक और हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के मुखिया गोपाल कांडा की पार्टी ने भी भाजपा से नाराजगी जताते हुए कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को समर्थन दे दिया। हलोपा के नेता प्रदीप को टिकट न मिलने से वह भी असंतुष्ट थे।

भाजपा की हार के 3 मुख्य कारण:

  1. कांग्रेस से आयातित प्रत्याशी पर भरोसा: भाजपा ने टिकट देने से एक दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए सुनील कुमार को उम्मीदवार बना दिया। इससे स्थानीय नेताओं में नाराजगी फैल गई और उन्होंने प्रचार से दूरी बना ली।
  2. टिकट बेचने और वोट खरीदने के आरोप: भाजपा के ज़िला अध्यक्ष पर टिकट बेचने के आरोप लगे, वहीं मतदान के दिन भाजपा कैंप के बाहर पैसे बांटने की वीडियो वायरल हो गई। इससे पार्टी की साख को भारी नुकसान पहुंचा।
  3. बगावत ने बिगाड़ा समीकरण: भाजपा से नाराज होकर चरणदास चन्नी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 215 वोट काट लिए। हलोपा नेता प्रदीप की नाराजगी ने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया।

इससे पहले 2016 में यहां से भाजपा के मुनीष जिंदल चेयरमैन बने थे। लेकिन कार्यकाल पूरा होने के बाद नगर पालिका को सरकार ने अपने अधीन कर लिया था और अब जाकर चुनाव हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस को यह जीत मनोवैज्ञानिक तौर पर बड़ी राहत देने वाली मानी जा रही है, खासकर तब जब हाल में हुए 10 नगर निगम चुनावों में कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली थी।