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फर्जी डिग्री घोटाले में ईडी का शिकंजा: हरियाणा सहित चार राज्यों में संपत्तियाँ अटैच

हरियाणा की बड़ी खबर

➤ मानव भारती यूनिवर्सिटी से जुड़े फर्जी डिग्री घोटाले में ईडी ने की बड़ी कार्रवाई
➤ तीन एजेंटों की 1.74 करोड़ की संपत्ति अस्थायी रूप से अटैच
➤ घोटाले से जुड़ी आय 387 करोड़, कई राज्यों में संपत्तियाँ खरीदी गईं


हिमाचल प्रदेश के बहुचर्चित फर्जी डिग्री घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए तीन कमीशन एजेंटों की 1.74 करोड़ रुपये की संपत्ति को अस्थायी रूप से अटैच कर दिया है। यह संपत्तियाँ हरियाणा, बिहार, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में फैली हुई हैं। जिन एजेंटों के खिलाफ यह कार्रवाई की गई है, उनके नाम हैं अभिषेक गुप्ता, हिमांशु शर्मा और अजय कुमार

यह कार्रवाई धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के अंतर्गत की गई है और इसकी जांच की शुरुआत धर्मपुर थाना, सोलन में दर्ज तीन अलग-अलग एफआईआर के आधार पर हुई थी। इन एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में अपराध दर्ज हैं।

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ईडी की जांच में सामने आया है कि सोलन स्थित मानव भारती यूनिवर्सिटी (MBU) के अध्यक्ष राज कुमार राणा ने अपने सहयोगियों और कमीशन एजेंटों के साथ मिलकर फर्जी डिग्रियों की बिक्री का एक संगठित रैकेट खड़ा किया था। इन एजेंटों ने ग्राहकों को फर्जी डिग्रियां बेचने में अहम भूमिका निभाई और इसके बदले मोटा कमीशन हासिल किया।

जांच में यह भी पता चला है कि इस अवैध कारोबार से करीब 387 करोड़ रुपये की काली कमाई हुई, जिसे राणा और उसके एजेंटों ने विभिन्न राज्यों में चल-अचल संपत्तियों में निवेश कर खपाया। इस कमाई से न केवल निजी फायदे उठाए गए, बल्कि यह एक राष्ट्रीय स्तर की शैक्षिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गहरा आघात है।

इससे पहले ईडी 14 व्यक्तियों और 2 संस्थाओं की संपत्तियों को अटैच कर चुकी है, जिनमें खुद राज कुमार राणा और अन्य एजेंट शामिल हैं। एजेंसी के मुताबिक इस घोटाले का नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ था और कई राज्यों में अब भी छानबीन जारी है।

इस घोटाले में हरियाणा की भूमिका भी जांच के घेरे में है, क्योंकि कई फर्जी डिग्रियों की बिक्री पंचकूला, अंबाला, करनाल और हिसार जैसे इलाकों में होने के सबूत सामने आए हैं। ईडी इस दिशा में भी जल्द और बड़ी कार्रवाई कर सकती है।

यह मामला न केवल शिक्षा के व्यवसायीकरण और गिरावट की ओर इशारा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे बिना किसी वैध मान्यता के हजारों डिग्रियां बांटी गईं, जो देशभर में नौकरियों और प्रवेश परीक्षाओं की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।