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हरियाणा कांग्रेस में संगठन की सुगबुगाहट तेज, माह के अंत तक जिलाध्यक्षों की नियुक्ति संभव

हरियाणा की बड़ी खबर

हरियाणा कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष व जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की कवायद तेज

इस माह अंत तक जिलाध्यक्षों की नियुक्ति संभव, हाईकमान को पैनल भेजा गया

2014 से लंबित नियुक्तियां, गुटबाजी खत्म कर नया संगठन बनाने पर जोर

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चंडीगढ़ से मिली जानकारी के अनुसार, हरियाणा कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष एवं जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर कवायद तेज हो गई है। पिछले कई दिनों से नई दिल्ली में इस संबंध में लगातार बैठकों का सिलसिला जारी है, जो पार्टी संगठन को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस कड़ी में, हाल ही में हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी बी. के. हरिप्रसाद ने साफ तौर पर घोषणा की है कि इस माह के अंत तक जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां कर दी जाएंगी। बी. के. हरिप्रसाद की इस घोषणा के बाद प्रदेश भर के कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं के चेहरों पर खुशी नजर आने लगी है। उन्हें उम्मीद है कि आखिर पार्टी नेतृत्व ने उनके मन की बात को जाना है और अब जल्द ही नए संगठन के साथ हरियाणा में कांग्रेस एक मजबूत पार्टी बनकर उभरेगी, जो आगामी चुनावों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

इससे पहले, इसी वर्ष 2 जून को कांग्रेस सांसद एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हरियाणा कांग्रेस के कई बड़े चेहरों के साथ दिल्ली में बैठक कर संगठन की रणनीति पर गहन मंथन किया था। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुर्जेवाला का नाम तो जोर-शोर से चर्चा में है ही, वहीं जातीय समीकरणों को साधते हुए कुमारी सैलजा, राव दान सिंह व डा. अशोक तंवर का नाम भी विचारणीय नामों की सूची में चल रहा है। यह उल्लेखनीय है कि 2014 के बाद से कांग्रेस में जिलाध्यक्ष एवं ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई है, जिसके कारण पार्टी का संगठनात्मक ढांचा काफी कमजोर हो गया था। इस संगठन के अभाव का खमियाजा कांग्रेस को पिछले कई चुनावों में भी भुगतना पड़ा है, जिससे पार्टी के प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ा।

सियासी विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस में लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी के चलते ही नया संगठन बनाने में लगातार विलंब होता चला आ रहा है। विभिन्न धड़ों के बीच आपसी खींचतान के कारण नियुक्तियां अटकती रही हैं। हालांकि, अब शीर्ष नेतृत्व को इस बात का गहरा अहसास हो गया है कि संगठन बनाना नितांत आवश्यक है ताकि जिला एवं ब्लॉक स्तर पर भी पार्टी की गतिविधियां निरंतर जारी रहें और पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा जा सके। इसके लिए सभी जिलों में नियुक्तियों के लिए एक पैनल बनाया गया, जिसमें शामिल नेताओं ने प्रत्येक जिले में पड़ाव डाला और गहन फीडबैक प्राप्त किया। फीडबैक लेने के साथ-साथ उन्होंने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर आवेदन भी लिए और उसके बाद 3-3 नामों के पैनल बनाकर हाईकमान को भेज दिए गए। इन पैनल में शामिल नामों को लेकर शीर्ष नेतृत्व द्वारा प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं से विस्तृत विचार-विमर्श करने के बाद अब जिलाध्यक्षों की सूची को अंतिम रूप दिया जा रहा है। ऐसे स्पष्ट संकेत मिले हैं कि आने वाले एक सप्ताह में पार्टी शीर्ष नेतृत्व जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों की सूची जारी कर सकता है, जिससे पार्टी में एक नई ऊर्जा का संचार होगा।

आपसी गुटबाजी के चलते अब तक नहीं हो सकी हैं नियुक्तियां – ऐसा भी माना जा रहा है कि पिछले काफी वर्षों से लंबित पड़ी कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी और जिलाध्यक्षों की नियुक्ति अब जल्द ही हो जाएगी। कुल 22 जिलों में 32 जिलाध्यक्ष बनाए जाने हैं, जो पार्टी के विस्तार की रणनीति का हिस्सा है। इनमें अंबाला में सबसे अधिक 3 जिलाध्यक्ष बनाए जाने हैं। ऐसे ही सोनीपत, गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक, हिसार, पानीपत, यमुनानगर, करनाल व भिवानी में 2-2 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की जाएगी, जबकि शेष जिलों में एक-एक जिलाध्यक्ष बनाए जाएंगे। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के बाद कांग्रेस की नई कार्यकारिणी में नए प्रदेशाध्यक्ष के साथ-साथ कई वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रधान महासचिव, सहित कई महासचिव व सचिव भी नियुक्त किए जा सकते हैं, जिससे पार्टी का ढांचा मजबूत होगा। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस में अलग-अलग नेताओं की एक धड़ेबंदी है और ऐसे में यह माना जा रहा है कि तमाम नेताओं को संतुष्ट करने और एडजस्ट करने के इरादे से ही कांग्रेस की कार्यकारिणी जम्बो आकार की हो सकती है। कांग्रेस हाईकमान ऐसा नहीं चाहेगा कि प्रदेश कार्यकारिणी या जिला कार्यकारिणी के नजरिए से किसी भी बड़े नेता को नाराज किया जाए, क्योंकि इससे गुटबाजी और बढ़ सकती है। ये नियुक्तियां तब से लंबित हैं जब 2014 में कांग्रेस में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष डा. अशोक तंवर के बीच गुटबाजी खुलकर सामने आई थी, जिसने संगठन को कमजोर किया।

पौने 11 वर्ष से सत्ता से बाहर है कांग्रेस – यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि कांग्रेस पिछले करीब पौने 11 वर्ष से प्रदेश में सत्ता से बाहर है और इस लंबी अवधि के दौरान कांग्रेस अपना नया संगठन भी नहीं बना पाई है। इस दौरान कांग्रेस के 3 प्रदेशाध्यक्ष और 4 प्रभारी बदल चुके हैं, लेकिन संगठन का काम अधूरा ही रहा। फरवरी 2014 में फूलचंद मुलाना की जगह अशोक तंवर को अध्यक्ष बनाया गया। तंवर संगठन खड़ा नहीं कर सके तो सितम्बर 2019 में उनकी जगह कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह से सैलजा को भी अप्रैल 2022 में हटा दिया गया और होडल के पूर्व विधायक उदयभान को प्रदेश प्रमुख बनाया गया। इस अवधि के दौरान कांग्रेस अनेक प्रभारी भी बदल चुकी है। 2014 में पहले जनार्दन द्विवेदी को प्रभारी बनाया गया। बाद में यह जिम्मेदारी गुलाम नबी आजाद को दी गई। फिर विवेक बसल को प्रभारी बनाया गया तो उसके बाद शक्ति गोहिल को प्रभारी बनाया गया। ऐसे ही गोहिल के बाद दीपक बाबरिया को प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई तो वर्तमान में बी. के. हरिप्रसाद को हरियाणा कांग्रेस का प्रभारी नियुक्त किया गया है। यह सारी कवायद अब पार्टी को संगठनात्मक रूप से मजबूत करने की दिशा में देखी जा रही है।