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प्रमोशन से जुड़ी हरियाणा पुलिस अधिकारियों की याचिका खारिज, हाई कोर्ट ने दिया ये तर्क

हरियाणा की बड़ी खबर

➤ हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों की पिछली तारीख से डीएसपी पदोन्नति याचिका खारिज की
➤ अदालत ने कहा पदोन्नति अधिकार नहीं, केवल नियमों और परिस्थितियों पर आधारित सुविधा है
➤ कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पक्षपात, धोखाधड़ी या शक्ति के दुरुपयोग के बिना बैकडेट प्रमोशन का कोई आधार नहीं


हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस के दो अधिकारियों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने जून 2019 से डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) पद पर पिछली तारीख से पदोन्नति की मांग की थी।

जस्टिस जगमोहन बंसल ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि पदोन्नति सेवा की शर्तों का हिस्सा जरूर है, लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है। इसे केवल संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 16) के तहत तय नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार दिया जा सकता है। जब तक किसी प्रकार का पक्षपात, धोखाधड़ी या शक्ति का दुरुपयोग साबित न हो, तब तक पिछली तारीख से पदोन्नति का कोई कानूनी औचित्य नहीं बनता।

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याचिकाकर्ता विकास कौशिक और एक अन्य अधिकारी वर्ष 2008 में हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर शामिल हुए थे। मई 2019 में 18 डीएसपी पदों को भरने के लिए 39 वरिष्ठतम इंस्पेक्टरों की सूची बनाई गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं का नाम भी था।

लेकिन सितंबर 2019 में होने वाली विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक हाईकोर्ट के एक अंतरिम आदेश के कारण टाल दी गई। मामला जुलाई 2020 में सुलझा और 27 जून 2020 को डीपीसी बैठक में 41 पदों के लिए 35 इंस्पेक्टरों को योग्य पाया गया। इसके बाद 5 अगस्त 2020 को पदोन्नति हुई, लेकिन प्रभावी तिथि उसी दिन से मानी गई।

याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि 2019 में जानबूझकर देरी की गई, जिससे 2020 बैच में अधिक अधिकारियों के आने के कारण उनकी आईपीएस बनने की संभावना प्रभावित होगी। उन्होंने जून 2019 से पदोन्नति लागू करने की मांग की।

राज्य सरकार ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं से जूनियर किसी भी अधिकारी को उनसे पहले पदोन्नत नहीं किया गया और यह देरी केवल न्यायिक प्रक्रिया की वजह से हुई, न कि किसी दुर्भावना से। अदालत ने सरकार की दलील को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी।