हिसार : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पूरे विश्व में अपनी धूम मचा रखी है। अब इसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर केंद्रीय भैंस अनुसंधान केंद्र हिसार, देश में पहली बार भैंसों में सेंसर लगाने की योजना पर काम कर रहा है।
बता दें कि भैंसे में यह सेंसर लग जाने के बाद किसान और भैंस पालक यह पता लगा पाएंगे कि उनकी भैंस बीमार होने वाली है या उसकी सेहत में कोई बदलाव आने वाला है। यह पता लगेगा कि वह गर्भधारण के लिए तैयार है या नहीं और साथ ही उसके शरीर में कोई भी केमिकल बदलाव होगा तो इसकी जानकारी किसानों को अपने मोबाइल पर ही मिल जाएगी। मोबाइल एप्लिकेशन से ही पशुओं की समस्याओं का समाधान किसानों को पता लग जाएगा।

सीआईआरबी हिसार के डायरेक्टर डॉक्टर टीके दत्ता के नेतृत्व व संस्थान के चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर अशोक बल्हारा की देखरेख में 1 अप्रैल 2024 से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया जाएगा। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन परियोजना के लिए 15 करोड रुपए सीआईआरबी को देगा और सीआईआरबी के वैज्ञानिक ये परियोजना आईआईटी रोपड़ व ऑस्ट्रेलिया की आडलेड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर पूरी करेंगे।

2029 तक योजना होगी पूरी
भारत के लिए यह परियोजना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरे विश्व की 56 फीसदी भैंसें भारत में हैं और देश में दूध की जरूरत प्रमुख रूप से भैंसों के दूध से ही पूरी होती है। योजना 2029 तक पूरी होगी। भैंसों के लिए तैयार किए जाने वाली सेंसर के माध्यम से भैंसों की गतिविधियों के बारे में पूरी नजर मोबाइल से ही रखी जा सकेगी।

भैंस को होने वाली बीमारियों का लगेगा पता
मोबाइल सीआईआरबी के सर्वर से जुड़ा होगा और यह सर्वर क्लाउड कंप्यूटर के साथ जुड़ते हुए एआई बेस एप्लीकेशन से जुड़े होंगे। जिसमें सभी डाटा कलेक्ट करके उसका एनालिसिस किया जाएगा। उसके आधार पर पशु पालकों को विभिन्न समस्याओं का समाधान बताया जाएगा। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य पशुपालकों की लागत कम करके पशुओं की उत्पादकता बढ़ाना है। इस सैंसर के माध्यम से पहले ही पता लग जाएगा कि कौन सी भैंस बीमार होने वाली है और उसके व्यवहार में क्या बदलाव आ रहा है। इस तकनीक के माध्यम से और अधिक लोग पशुपालन से जुड़ पाएंगे।
