रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में कैंसर पर शोध चल रहा है जिसके तहत बिना चीर-फाड़ किए ही कैंसर की पहचान की जाएगी। ताकि इससे रोगी को जल्दी इलाज मिल सके। इस शोध के तहत दो अलग-अलग विधियों से कैंसर की पहचान का प्रयास किया जा रहा है। एक शोध के तहत मुंह के सलाइवा मतलब लार का उपयोग करके कैंसर की पहचान करने का प्रयास है जिसमें करीब 3 महीने का समय लगेगा। दूसरे शोध के तहत सांस से कैंसर की पहचान की जा रही है जिसमें करीब एक साल का समय लगेगा।
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रश्मि भारद्वाज ने बताया कि वह पिछले 4 साल से कैंसर की पहचान के लिए शोध कर रही हैं और अब इसमें सकारात्मक परिणाम दिख रहे हैं। इस शोध के सफल होने पर कैंसर की पहचान के लिए चीर-फाड़ और खर्चीला बायोप्सी टेस्ट की आवश्यकता नहीं होगी। शोध में 130 लोगों का समीक्षात्मक अध्ययन हो रहा है। शोध का एक हिस्सा मुंह के सलाइवा से कैंसर की पहचान का प्रयास कर रहा है जिसमें सलाइवा से व्यक्ति के जेनेटिक कोड और प्राकृतिक सेल की जानकारी प्राप्त की जाएगी। दूसरा अंश सांस से फेफड़े के कैंसर की पहचान को लेकर है जिसमें मरीज की सांस नली से जेनेटिक बदलाव का अध्ययन होगा। इस शोध के पूरा होने पर इसे मरीजों के लाभ के लिए प्रयोग किया जा सकेगा।
बायोप्सी का तरीका खर्चीला और दर्दनाक
शोधकर्ता की मानें तो अब तक कैंसर की पहचान के लिए बायोप्सी ही एक तरीका रहा है। यह एक चीरफाड़ व दर्द के अलावा खर्चीली तकनीक है। इसमें मरीज को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है। एमडीयू में द्रव्य पदार्थ से कैंसर की पहचान पर शोध चल रहा है। इसके तहत मुंह के कैंसर पीड़ितों से स्लाइवा लेकर उसकी नैनो पार्टिकल के जरिए जेनेटिक जानकारी प्राप्त की जाती है। स्लाइवा के एक्सोजोम में व्यक्ति का जैनेटिक कोड व प्राकृतिक सेल की जानकारी होती है। इनके आने वाले बदलाव को शुरुआती स्तर पर ही पहचान लिया जाए तो समय रहते बीमारी का पता लगाना व इलाज करना संभव है।