Haryana में ही नहीं सारे देश में DAP की किल्लत है। हरियाणा और पंजाब में गेहूं की अधिक फसल उगाई जाती है, जिसके कारण DAP खाद की मांग बढ़ी है, लेकिन सरकार द्वारा DAP पर दी जा रही सब्सिडी को पिछले तीन वर्षों में कम किया गया है, जिससे इसकी आपूर्ति प्रभावित हुई है। किसानों का आरोप है कि सरकार उनकी आवाज दबाने के लिए खाद की आपूर्ति कम कर रही है, ताकि किसानों को यह महसूस हो सके कि सरकार के हाथ लंबे हैं और वह उन्हें कमजोर कर सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, DAP के बिना किसानों को गंभीर परेशानी का सामना करना पड़ेगा, जिससे देश के खाद्यान्न उत्पादन में कमी हो सकती है। इस स्थिति का असर किसान की फसल की कीमतों पर भी पड़ेगा। सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की सलाह देती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसान प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ेगा, तो देश के खाद्यान्न भंडार में कमी आएगी।
किसानों पर फसल अवशेष जलाने के लिए FIR दर्ज करने की आलोचना की जा रही है। किसानों का कहना है कि पराली जलाने से प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा नहीं बढ़ता, जबकि अधिकांश प्रदूषण फैक्ट्रियों और अन्य स्रोतों से होता है। दिल्ली में प्रदूषण का मुख्य कारण वहां की फैक्ट्रियों को बताया जा रहा है, जबकि किसानों के योगदान को कम करके आंका गया है।
इसके साथ ही यमुना का गंदा पानी भी स्वास्थ्य संकट का कारण बन रहा है। कृषि और प्रदूषण के मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। किसानों को फसल अवशेष का सही मूल्य मिलना चाहिए, और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीति बनानी चाहिए।