हरियाणा के जुलाना उपमंडल के बीबीपुर गांव में एक अनोखी सोच ने न केवल भारत बल्कि 70 देशों तक अपनी छाप छोड़ी है। इस क्रांति के सूत्रधार हैं Sunil Jaglan, जिन्होंने “सेल्फी विद डॉटर” अभियान के जरिए बेटियों को गर्व का प्रतीक बनाया। यह कहानी सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का संदेश है।
2012 में बेटी नंदिनी के जन्म पर अस्पताल में नर्स के व्यवहार ने सुनील को गहरी चोट पहुंचाई। मिठाई के पैसे लौटाने के साथ नर्स का कहना, “बेटा होता तो स्वीकार कर लेते,” समाज में गहरे पितृसत्तात्मक सोच की ओर इशारा था। इस घटना ने सुनील को बेटियों के प्रति नजरिया बदलने की ठानने पर मजबूर कर दिया।
खाप पंचायत के बीच गूंजी “लाडो पंचायत” की आवाज
गांव के स्वास्थ्य केंद्र में खराब लिंगानुपात के आंकड़े देखकर सुनील ने महिला ग्राम सभाओं की शुरुआत की। यहां से “लाडो पंचायत” का जन्म हुआ, जो बेटियों को केंद्र में रखते हुए सामाजिक मुद्दों पर खुलकर चर्चा करती है। उनकी पहल को भारतीय संसद तक आमंत्रित किया गया और इसे देशभर में सराहा गया।

सेल्फी विद डॉटर: एक छोटी सोच से वैश्विक आंदोलन तक
9 जून 2015 को बेटी नंदिनी के साथ खींची एक सेल्फी ने इंटरनेट पर तूफान ला दिया। “सेल्फी विद डॉटर” ने दुनियाभर के माता-पिता को अपनी बेटियों पर गर्व करने के लिए प्रेरित किया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विचार को जन आंदोलन बनाने में सहयोग दिया। अब तक 50,000 से अधिक नेम प्लेट बेटियों के नाम पर लग चुकी हैं।

बेटी नंदिनी: पिता के नक्शेकदम पर
सुनील के 75 अभियानों में बेटी नंदिनी भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी हैं। “गाली मुक्त स्कूल” और “फर्स्ट पीरियड स्माइल” जैसे अभियानों के जरिए नंदिनी अपने साथियों को प्रेरित कर रही हैं।