76th Nirankari Sant Samagam

76th Nirankari Sant Samagam : सुदीक्षा महाराज बोलीं ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही कर सकता है मानवता सच्ची सेवा

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(समालखा से अशोक शर्मा की रिपोर्ट) सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि ईश्वर के प्रति समर्पित मन ही मानवता की सच्ची सेवा कर सकता है। एक सही मनुष्य बनकर पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी जीवन जी सकता है। जीवन में सेवा एवं समर्पण का भाव अपनाने से ही सुकून आ सकता है। संसार में जब मनुष्य किसी व्यवसाय के साथ जुड़ा होता है, तब वहां का समर्पण किसी भय अथवा अन्य कारण से हो सकता है। जिससे सुकून प्राप्त नहीं हो सकता।

यह विचार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने 76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन के मुख्य सत्र में उपस्थित अनुयायियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। 3 दिवसीय निरंकारी संत समागम में देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु और अनुयायी शामिल हुए। समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का समावेश होने से अनेकता में एकता का सुंदर नजारा समालखा के पास हलदाना बार्डर की धरती पर देखने को मिला। इस दौरान सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि भक्त के जीवन का वास्तविक समर्पण तो प्रेमाभाव में स्वयं को अर्पण कर इस परमात्मा का होकर ही हो सकता है। वास्तविक रूप में ऐसा समर्पण ही मुबारक होता है।

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अनासक्ति की भावना धारण करने से उत्पन्न होता है समर्पण का भाव

सुदीक्षा महाराज ने कहा कि किसी वस्तु विशेष, मान-सम्मान या उपाधि के प्रति जब हमारी आसक्ति जुड़ जाती है, तब हमारे अंदर समर्पण भाव नहीं आ पाता है। वहीं अनासक्ति की भावना को धारण करने से हमारे अंदर पूर्ण समर्पण का भाव उत्पन्न हो जाता है। परमात्मा से नाता जुड़ने के उपरांत आत्मा को अपने इस वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाता है। जिससे केवल वस्तु-विशेष ही नहीं, अपितु अपने शरीर के प्रति भी वह अनासक्त भाव धारण करता है।

सतगुरु माता सुदीक्षा ने कहा कि जब हम इस कायम-दायम निराकार की पहचान करके इसके प्रेमाभाव में रहेंगे। इसे हर पल महसूस करेंगे, तब हमारे जीवन में आनंद, सुकून एवं आंतरिक शांति निरंतर बनी रहेगी।

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सेवादल रैली सेवा के स्वरूपों को व्यावहारिक रूप में किया जागृत

निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन से सेवादल रैली में सेवा दल के अनुयायियों ने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सेवा के स्वरूपों को व्यावहारिक रूप में जागृत किया। ध्वज फहराने करने के बाद मंच पर माता सुदीक्षा महाराज, निरंकारी राजपिता गद्दी आसीन हुए। सेवा दल के जवानों ने प्रार्थना, पीटी परेड, शारीरिक करतब, ज्ञानवर्धक संदेश जैसे कार्यक्रम प्रस्तुत किए। कार्यक्रम के माध्यम से संदेश दिया गया कि सेवा में मर्यादा की शक्ति, सेवा का श्रृंगार मर्यादा से हो। अंदर बाहर गुरमत हो, चेतन रहते सेवा करें। ब्रह्मज्ञान के बाद की गई सेवा सितारा बना देती है। पर्यावरण को शुद्ध रखना भी सेवा है। सेवा भाव सेवा का स्वभाव बन जाए।

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विदेशों से आए सेवादल सदस्यों को सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने आशीर्वाद प्रदान किया। सेवादल के सदस्य सतगुरु के सामने से प्रणाम करते हुए गुजरे और अपने हृदय सम्राट सतगुरु के प्रति सम्मान प्रकट किया।

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समर्पित भाव से की गई सेवा ही होती है स्वीकार

सेवादल रैली को संबोधित करते हुए सतगुरु माता संदीक्षा ने कहा कि समर्पित भाव से की जाने वाली सेवा ही स्वीकार होती है। जहां कही भी सेवा की आवश्यकता हो, उसके अनुसार सेवा का भाव मन में लिए हम सेवा के लिए प्रस्तुत होते हैं। वहीं सच्ची भावना महान सेवा कहलाती है। यदि कहीं हमें लगातार एक जैसी सेवा करने का अवसर मिल भी जाता है।

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हमें इसे केवल एक औपचारिकता न समझते हुए पूरी लगन से करना चाहिए। क्योंकि जब हम सेवा को सेवा के भाव से करेंगे तो स्थान को महत्व शेष नहीं रह जाता। जब हम ऐसी सेवा करते हैं तो उसमें निश्चित रूप में मानव कल्याण का भाव निहित होता है। इस दौरान पूर्व सेवादल के सदस्य इंचार्ज विनोद वोहरा ने समस्त सेवादल की ओर से सतगुरु माता सुदीक्षा और निरंकारी राजपिता का सेवादल रैली के रूप में आशीष प्रदान करने के लिए शुकराना किया।

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