प्रत्येक माह में दो चतुर्थी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। इस समय मार्गशीर्ष का महीना चल रहा है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि यह गणेश जी की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और पूरी आस्था और भक्ति के साथ भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं।
गणधिप संकष्टी चतुर्थी मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष के दौरान आती है जिसे बेहद शुभ माना जाता है।मार्गशीर्ष माह की संकष्टी चतुर्थी के व्रत की शुरुआत आज सुबह से हो गई है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद व्रत की शुरुआत होती है। फिर शाम को भगवान गणेश की पूजा और चंद्र देव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।

पूजा का मुहूर्त और चंद्रोदय का समय
ज्योतिषाचार्य के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत आज दोपहर 02 बजकर 24 मिनट पर होगी। इस तिथि का समापन कल 1 दिसंबर शुक्रवार को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज ही रखा जाएगा, क्योंकि चतुर्थी तिथि का चंद्रोदय आज ही प्राप्त हो रहा है। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की पूजा सुबह की जाएगी।
आज दिन का चौघड़िया शुभ-उत्तम मुहूर्त सुबह 06:55 बजे से सुबह 08:14 बजे तक था। लाभ-उन्नति मुहूर्त दोपहर 12:10 बजे से दोपहर 01:28 बजे तक और अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त दोपहर 01:28 बजे से दोपहर 02:47 बजे तक है। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की रात चंद्रोदय शाम 07 बजकर 54 मिनट पर होगा। इस समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा किया जााएगा। उसके बाद पारण होगा।

इस तरह करें गणाधिप संकष्टी चुतुर्थी की पूजा
गणाधिप संकष्टी चुतुर्थी की पूजा करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और अपने दैनिक कार्यों से निवृत होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान गणेश जी की पूजा और व्रत का संकल्प लें। फिर एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वर को रख दें। इसके बाद आप भगवान गणेश की मूर्ति पर अक्षत, कुमकुम, दूर्वा, रोली, इत्र, मैवे-मिष्ठान अर्पित करें।
व्रत की कथा पढ़ें और इस दौरान आप धूपबत्ती जलाएं। आखिर में आप गणेश जी की आरती करें। आरती के बाद गणेश जी को उनके प्रिय मोदक का भोग लगाएं। रात के वक्त चंद्रमा निकलते ही अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूरा कर लें। बाद में आप पारण कर लें। इस तरह आपका व्रत पूरा हो जाएगा।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
संकष्टी चतुर्थी का सनातन धर्म में अपना ही महत्व है, क्योंकि यह भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और पूरी आस्था और भक्ति के साथ भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। गणधिप संकष्टी चतुर्थी मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष के दौरान आती है। भगवान गणेश को भक्तों के जीवन से बाधाओं को दूर करने के लिए जाना जाता है क्योंकि उन्हें विघ्न हर्ता के रूप में जाना जाता है, जो जीवन से समस्याओं को दूर करते हैं। बप्पा की पूजा के बिना कोई भी पूजा अनुष्ठान और शुभ कार्य पूर्ण नहीं होते हैं।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर बन रहे है तीन शुभ योग
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस पवित्र महीने में पड़ने वाला यह त्योहार विशेष महत्व वाला होता है। माना जाता है कि गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस बार गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन 3 शुभ योग बन रहे है।

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का दिन बेहद खास है, क्योंकि आज दोपहर 03 बजकर 01 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। अगले दिन यानी शुक्रवार सुबह 06 बजकर 56 मिनट तक रहेगा। गुरुवार यानी आज शुभ योग प्रात:काल से लेकर रात 08 बजकर 15 मिनट तक है, वहीं शुक्ल योग रात 08:15 बजे से लेकर शुक्रवार रात 08:04 बजे तक है।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवी-देवताओं के ऊपर भारी संकट आ गया। जब वह खुद से उस संकट का समाधान नहीं निकाल पाए तो भगवान शिव के पास मदद मांगने के लिए गए। भगवान शिव ने गणेश जी और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे आसानी से इसका समाधान कर लेंगे। इस प्रकार शिवजी दुविधा में आ गए। उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर जो सबसे पहले मेरे पास आएगा वही समाधान करने जाएगा।

भगवान कार्तिकेय बिना किसी देर किए अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल गए। वहीं गणेश जी के पास मूषक की सवारी थीय़ ऐसे में मोर की तुलना में मूषक का जल्दी परिक्रमा करना संभव नहीं था। तब उन्होंने बड़ी चतुराई से पृथ्वी का चक्कर ना लगाकर अपने स्थान पर खड़े होकर माता पार्वती और भगवान शिव की 7 परिक्रमा की। जब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो इस पर गणेश जी बोले माता पिता के चरणों में ही पूरा संसार होता है।

इस वजह से मैंने आप की परिक्रमा की। यह उत्तर सुनकर भगवान शिव और माता पार्वती बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने देवताओं का संकट दूर करने के लिए गणेश जी को चुना। इसी के साथ भगवान शिव ने गणेश जी को यह आशीर्वाद भी दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन कर चंद्रमा को जल अर्पित करेगा उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे। साथ ही पाप का नाश और सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी।