बोधगया के प्रसिद्ध महाबोधि महाविहार मंदिर में 24 नवंबर तक भव्य आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इस पवित्र आयोजन में भूटान के प्रमुख मठों से 150 भिक्षुओं ने भाग लिया, जिनमें डुक थुबटेन चोलिंग मठ, टैगो तांत्रिक बौद्ध मठ और रॉयल भूटान मठ शामिल हैं।
महाकाल पूजा और 16 अर्हत पूजा का आयोजन
महाबोधि मंदिर परिसर के बोधिवृक्ष के नीचे भूटानी संघों ने महाकाल पूजा और 16 अर्हत पूजा का आयोजन किया। इस पूजा का उद्देश्य शांति, समृद्धि, और आध्यात्मिक ज्ञान का आह्वान करना था। यह आयोजन ल्हाबाब डुचेन पर्व को चिह्नित करता है, जो भगवान बुद्ध के तुशिता स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण का प्रतीक है।
भारत-भूटान के संबंधों को नई ऊंचाई
इस आध्यात्मिक आयोजन ने भारत और भूटान के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को और मजबूत किया। महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति ने इस आयोजन को दोनों देशों के बीच स्थायी आध्यात्मिक संबंधों का प्रतीक बताया।
प्रमुख आध्यात्मिक नेताओं की उपस्थिति
इस पूजा की अध्यक्षता भूटान के प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता महासंघ राजा दोरजी लोपेन रिनपोछे ने की। साथ ही लोपेन समतेन दोरजी, खेंचेन त्शोमो दोरजी, और कोलकाता में रॉयल भूटान वाणिज्य दूतावास के महावाणिज्य दूत ताशी पंजोर ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
16 अर्हत पूजा का महत्व
16 अर्हत, बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध द्वारा चुने गए प्रमुख शिष्यों का समूह है, जिनसे धर्म की रक्षा का अनुरोध किया गया था। इस पूजा में पिंडोल भारद्वाज, कनकवत्स, श्रीभद्र, कालिका, और अन्य प्रमुख अर्हतों का स्मरण किया गया।
ल्हाबाब डुचेन का महत्व
भूटान और तिब्बती परंपरा के अनुसार, ल्हाबाब डुचेन भगवान बुद्ध के जीवन की चार महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह दिन बुद्ध के तुशिता स्वर्ग से पृथ्वी पर लौटने का उत्सव है।
इस आयोजन ने भूटान और भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को नई ऊंचाई दी है। महाबोधि मंदिर में यह पूजा, शांति और सद्भाव के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम बनी।