जितिया व्रत पितृपक्ष के बीच में पड़ता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मां अपनी संतान की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं। माताएं हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बच्चों की सलामती के लिए निर्जला व्रत करती हैं। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत में गंधर्व राजा जीमूतवाहन की पूजा के साथ जितिया व्रत की कथा सुनी और पढ़ी जाती है। माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना मन में लिए पूरी श्रद्धा भाव से इस व्रत को करती हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत को आश्विन कृष्ण अष्टमी को रखा जाता है। अष्टमी तिथि का आरंभ 6 अक्टूबर शुक्रवार को सुबह 6 बजकर 34 मिनट पर होगा और 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 8 मिनट तक रहेगा। इसलिए जितिया का व्रत 6 अक्टूबर को रखा जाएगा और 7 को इसका पारण किया जाएगा।
जितिया व्रत में बने हैं ये शुभ योग
इस साल जितिया व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और परिघ योग बन रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि इन शुभ योग में जितिया का व्रत करना परमफलदायी माना जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग 6 अक्टूबर की रात को 9 बजकर 32 मिनट से लग रहा है। जो अगले दिन सुबह 6 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा परिघ योग 6 अक्टूबर की सुबह से लेकर अगले दिन प्रात: 5 बजकर 31 मिनट तक है। इसके अलावा इस दिन आर्द्रा नक्षत्र और पुनर्वसु नक्षत्र भी लगा रहेगा।
जितिया व्रत का नहाय खाय कब है
जितिया व्रत का नहाय खाय 5 अक्टूबर को होगा और 6 अक्टूबर को माताएं इस व्रत को विधि विधान से करेंगी। उसके अगले दिन 7 अक्टूबर को इसका पारण किया जाएगा।
जितिया व्रत की पूजा विधि
जितिया व्रत से एक दिन पहले महिलाओं को सात्विक भोजन करके नहाय खाय से आरंभ करना चाहिए। उसके बाद व्रत वाले दिन सुबह जल्दी स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत करने का संकल्प लें। पूजा के लिए जीमूतवाहन भगवान की मूर्ति की स्थापना पानी से भरे एक पात्र में करें। फिर अक्षत, फूल, फल, पीले वस्त्र, सरसों के तेल और बांस के पत्तों आदि से भगवान की पूजा करें। भगवान को लाल और पीले रंग की रुई चढ़ाएं। उसके बाद जितिया व्रत की कथा सुनें और आरती करके पूजा संपन्न करें। इस व्रत में गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाकर उनकी भी पूजा की जाती है।
कैसे शुरू हुआ जितिया व्रत?
महाभारत युद्ध में पिता की मौत से नाराज अश्वत्थामा ने पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला था। कहते हैं कि वे सभी द्रौपदी की पांच संतानें थी। इसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली थी। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया।
आगे चलकर यह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है। जितिया व्रत कठिन व्रतों में से एक है। इस व्रत में बिना पानी पिए कठिन नियमों का पालन करते हुए व्रत पूर्ण किया जाता है। लेकिन कुछ खास बातों का ध्यान रखने की भी जरूरत है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की सावधानियां
जितिया व्रत में लहसुन, प्याज और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है। व्रत के दौरान मन, वचन और कर्म की शुद्धता आवश्यक है। गर्भवती महिलाओं यह व्रत न रखकर सिर्फ पूजा कर लें तो बेहतर होगा। जिन महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उन्हें भी यह व्रत नहीं रखना चाहिए।
धन प्राप्ति का उपाय
शुक्रवार के दिन सफेद मिठाई का दान करें। इससे धन की प्राप्ति भी होगी और धन की बचत भी होगी। अगर कारोबार में विस्तार चाहते हैं तो शुक्रवार के दिन गुलाबी फूल पर बैठी हुई लक्ष्मी जी का चित्र स्थापित करें। इसके बाद मां लक्ष्मी को गुलाब का इत्र अर्पित करें।