वर्ष 2019 में लद्दाख से उसका विशेष दर्जा छीन लिया गया था और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित कर दिया था, अब उसके बाद कारगिल में पहली बार चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) गठबंधन ने साफतौर पर जीत हासिल की। लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद-कारगिल में इन्हें बहुमत हासिल हुआ। भारत के दोनों गठबंधन सहयोगियों ने कुल 22 सीटें हासिल की। जिसमें कांग्रेस 10 और एनसी 12 पर विजयी रही।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसके भंग होने से पहले परिषद में तीन सदस्य थे, वह दो सीटों पर सिमट गई, जबकि दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने एक-एक सीट जीती। 26 सीटों के लिए चुनाव 4 अक्टूबर को हुए थे। केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा नामित चार सदस्य होते हैं, जिसका नेतृत्व केंद्र द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल करते हैं, जिससे भाजपा को बढ़त मिलती है। 30 सदस्यीय परिषद में बहुमत का आंकड़ा 16 है। मुख्य कार्यकारी पार्षद, जो लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) का प्रमुख होता है, उसके पास कैबिनेट मंत्री का पद और शक्तियां होती हैं, जबकि नियुक्त कार्यकारी पार्षदों के पास उप मंत्री का पद और दर्जा होता है।
कांग्रेस के संगठन प्रभारी महासचिव ने मनाया जश्न
बता दें कि 2018 के चुनावों के दौरान, एनसी को 10 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस को आठ सीटें मिली थी। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को दो सीटें मिली। भाजपा को एक और पांच निर्दलीय उम्मीदवार थे। पीडीपी के दो सदस्य बाद में भाजपा में शामिल हो गए, जिससे इसकी संख्या तीन हो गई। जीत का जश्न मनाते हुए कांग्रेस के संगठन प्रभारी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने लिखा हमने 10 साल बाद लद्दाख-कारगिल स्वायत्त हिल काउंसिल चुनावों में शानदार जीत दर्ज की है।
एनसी-कांग्रेस गठबंधन के हाथों बीजेपी को मिली करारी हार
वहीं एनसी नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि बीजेपी को आज कारगिल में एनसी-कांग्रेस गठबंधन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी के साथ हमारे मजबूत गठबंधन के जश्न में, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस को एलएएचडीसी कारगिल चुनावों में अपनी जीत की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है। यह परिणाम उन सभी ताकतों और पार्टियों को एक संदेश भेजता है, जिन्होंने अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक तरीके से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख राज्य को वहां के लोगों की सहमति के बिना विभाजित किया है।
वोट मांगने आने से पहले सवालों के जवाब देने की जरूरत
बता दें कि चुनाव से कुछ दिन पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी अगस्त में यूटी के दौरे पर थे, जहां उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के साथ बातचीत की। चुनावी राज्य कारगिल में एक रैली के दौरान उन्होंने लद्दाख में चीनी भूमि पर कथित कब्जे का मुद्दा उठाया। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ एनसी नेता उमर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी के लिए प्रचार किया। उन्होंने कहा वे (भाजपा) खुलेआम मुसलमानों के प्रति अपनी नफरत दिखा रहे हैं। वोट मांगने के लिए यहां आने से पहले उन्हें सवालों के जवाब देने की जरूरत है।
जनता के सामने खड़े होने का खो दिया नैतिक आधार
इतना ही नहीं अब्दुल्ला ने मतदान से एक सप्ताह पहले कहा था कि उन्होंने जनता के सामने खड़े होने का नैतिक आधार खो दिया है। राज्य चुनाव आयोग द्वारा चुनाव चिह्न आवंटित करने के लिए पार्टी के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लिए बिना चुनावों को अधिसूचित करने के बाद नेकां को अपने “हल” चिन्ह पर अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए अदालतों में भी लड़ना पड़ा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने क्षेत्रीय पार्टी के पक्ष में फैसला सुनाया।