Devshayani Ekadashi आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हर साल देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने(banned for 4 month) के लिए योग निद्रा में चले जाते है और चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है, चातुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है, सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों(Manglik activities) पर रोक लग जाती हैं।
चातुर्मास आषाढ़ माह के शुक्ल एकादशी तिथि से प्रारंभ होकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है। चातुर्मास के प्रारंभ होते ही भगवान श्रीहरि(Shri Hari) विष्णु योग निद्रा(Yog Nidra) में चले जाते हैं, वे सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव को सौंप देते है। माना जाता है कि इस दिन से 4 माह के लिए देव शयन करने चले जाते हैं। इस दौरान सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। इस को देवशयनी एकाजशी के नाम से जाना जाता है। और जब भगवान विष्णु नींद से जागते हैं तो उस तिथि को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
इस चार महीनों में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किये जाते है। फिर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु नींद से जागते हैं इसलिए ही इसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन शालिग्राम भगवान और तुलसी जी का विवाह भी कराया जाता है।
2024 में चातुर्मास 17 जुलाई से शुरू होगा और इसकी समाप्ति 12 नवंबर को होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान विवाह समारोह, सगाई, मुंडन संस्कार, बच्चे का नामकरण जैसे तमाम मांगलिक कार्यों को करने की मनाही होती है। लेकिन देवउठनी एकादशी से सभी शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं।