Beas : बाबा गुरिंदर सिंह(Baba Gurinder Singh) ढिल्लों, जिन्हें उनके अनुयायी बाबा के नाम से भी जानते हैं, राधा स्वामी सत्संग ब्यास(RSSB) के आध्यात्मिक प्रमुख हैं। वह हज़ूर महाराज चरन सिंह महाराज सावन सिंह के पोते तथा सरदार बहादुर महाराज जगत सिंह के उत्तराधिकारी), जो इनके मामा थे, के निधन के बाद 10 जून 1990 को डेरा ब्यास के अगले अध्यात्मिक प्रमुख बने। इस आध्यात्मिक संप्रदाय का मुख्यालय, जिसे डेरा बाबा जयमल सिंह कहा जाता है, उत्तर भारत में पंजाब के ब्यास शहर के पास ब्यास नदी के किनारे स्थित है और यह 1891 से सत्संग का केंद्र रहा है। राधा स्वामी सत्संग ब्यास के केंद्र दुनिया भर में स्थित हैं।
बाबा गुरिंदर सिंह(Baba Gurinder Singh) का जन्म 1 अगस्त 1954 को ढिल्लों जट सिख परिवार में हुआ था, जो राधा स्वामी सत्संग ब्यास के अनुयायी थे। उनके माता-पिता का नाम सरदार गुरमुख सिंह ढिल्लों और माता महिंदर कौर है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के शिमला हिल्स में द लॉरेंस स्कूल, सनावर में शिक्षा प्राप्त की और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1990 में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के अगले आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में अपना नामांकन स्वीकार करने के लिए भारत वापस आने से पहले वह स्पेन में काम कर रहे थे। उनकी शादी शबनम कौर से हुई और उनके दो बेटे हैं, जिनका नाम गुरप्रीत सिंह ढिल्लों और गुरकीरत सिंह ढिल्लों है। गुरप्रीत सिंह ढिल्लों रेलिगेयर हेल्थ ट्रस्ट(आरएचटी) के सीईओ हैं।
पंजाब के ब्यास शहर में स्थित डेरा में संगठन के आध्यात्मिक प्रमुख हजूर बाबा का घर है। उनके प्रवचन सुनने के लिए, निर्धारित दिनों में आमतौर पर सप्ताहांत पर भारी भीड़ आती है। वह भारत में राधा स्वामी सत्संग ब्यास के अन्य प्रमुख केंद्रों में भी सत्संग देते हैं। वह अप्रैल-अगस्त के महीनों के दौरान भारत के बाहर विभिन्न राधा स्वामी सत्संग ब्यास केंद्रों के दौरे पर जाते है। बाबा गुरिंदर सिंह(Baba Gurinder Singh) ने कहा कि भगवान ने हम सबको दिल एक ही दिया है, पर मनुष्य की चाहत ढेरों हैं। जो कई जन्मों में पूरी नहीं कर सकता, मन(Mind) को काबू में करना होगा, क्योंकि मन(Mind) चंचल होता है। ऋषि मुनि भी मन(Mind) को काबू करने के लिए पहाड़ों और जंगलों में तपस्या करते थे, भोग-विलास से ऊपर उठना होगा। एक तपस्वी और नाव चालक की कथा सुनाते हुए बताया कि कई सालों की तपस्या के बाद भी अपने मन(Mind) को काबू नहीं कर सके और कामवासना में लिप्त हो गए। मन(Mind) एक अंधा कुआं है, जो बहुत ताकतवर(Powerful) है।
ब्यास नदी का इतिहास
ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था। यह कुल्लू में व्यास कुंड से निकलती है। व्यास कुंड पीर पंजाल पर्वत शृंखला में स्थित रोहतांग दर्रे में है। यह कुल्लू मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा में बहती है। कांगड़ा से मुरथल के पास पंजाब में चली जाती है। मनाली, कुल्लू, बजौरा, औट, पंडोह, मंडी, सुजानपुर टीहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर इसके प्रमुख तटीय स्थान हैं। इसकी कुल लंबाई 460 कि.मी. है। हिमाचल में इसकी लंबाई 256 कि.मी. है। कुल्लू में पतलीकूहल, पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, फोजल, सर्वरी और सैज इसकी सहायक नदियां हैं। कांगड़ा में सहायक नदियां बिनवा न्यूगल, गज और चक्की हैं। इस नदी का नाम महर्षि ब्यास के नाम पर रखा गया है। यह प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों में से एक है।
कुल्लू घाटी से होते हुए दक्षिण की ओर बह रही
इस नदी का उद्गम मध्य हिमाचल में वृहद हिमालय की जासकर पर्वतमाला के रोहतांग दर्रे पर 4,361 मीटर की ऊंचाई से होता है। यहां से यह कुल्लू घाटी से होते हुए दक्षिण की ओर बहती है। जहां पर सहायक नदियों को अपने में मिलाती है। फिर यह पश्चिम की ओर बहती हुई मंडी नगर से होकर कांगड़ा घाटी में आ जाती है। घाटी पार करने के बाद ब्यास पंजाब में प्रवेश करती है व दक्षिण दिशा में घूम जाती है और फिर दक्षिण-पश्चिम में यह 470 कि.मी. बहाने के बाद आर्की में सतलुज नदी में जा मिलती है। व्यास नदी 326 ई.पू. में सिकंदर महान के भारत आक्रमण की अनुमानित पूर्वी सीमा थी।