Mother Bala Sundari had reached here in a sack of salt

India के शक्तिपीठों में से एक, जहां Salt की बोरी में पहुंची थी मां Bala Sundari, 300 वर्ष पुराने Temple में हर वर्ष लगता है भक्तों का तांता

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नाहन : महामाई त्रिपुर बाला सुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर उत्तरी भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक हैं। जहां हर वर्ष भारी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगता हैं। यह हिमाचल के जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन में लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां मां बालासुंदरी नमक की बोरी में आई थी।

बता दें कि चैत्र एवं अश्वनी मास में पड़ने वाले नवरात्र के अवसर पर मंदिर में विशेष मेले का आयोजन होता हैं। मंदिर में सुबह 5 बजे माता की विशेष पूजा एवं हवन का आयोजन किया जाता हैं। नाहन से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर महामाई त्रिपुर बाला सुंदरी का लगभग साढे 300 वर्ष पुराना मंदिर धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता साक्षात रूप में विराजमान हैं और यहां पर मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती हैं। जनश्रुति के अनुसार 1573 में महामाई उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर से मुज्जफरनगर के देवबंद स्थान से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई थी। कहा जाता है कि लाला रामदास जो सदियों पहले त्रिलोकपुर में नमक का व्यापार करते थे, उनकी नमक की बोरी में माता उनके साथ यहां आई थी। उनकी दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी। उन्होंने देवबंद से लाया तमाम नमक दुकान में डाल दिया और बेचते गए मगर नमक खत्म होने में नहीं आया।

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पीपल वृक्ष के नीचे पिण्डी के रूप में स्थापित हुई थी मां

लाला रामदास उस पीपल के वृक्ष को हर रोज सुबह जल देकर उसकी पूजा करते थे। उन्होंने नमक बेचकर बहुत पैसा कमाया, लेकिन वह एक दिन चिंता में पड़ गए कि नमक खत्म क्यों नहीं हो रहा हैं। मां ने खुश होकर रात को लाला के सपने में आकर दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारे भक्तिभाव से अति प्रसन्न हूं। मैं यहां पीपल के वृक्ष के नीचे पिण्डी के रूप में स्थापित हो गई हूं और तुम मेरा यहां भवन बनवाओ। लाला ने कहा कि इतने बड़े भवन निर्माण के लिए मेरे पास सुविधाओं व पैसों की कमी हैं। इसलिए आप सिरमौर के महाराजा को भवन निर्माण का आदेश दें। मां ने अपने भक्त की पुकान सुनते हुए राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया।

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श्रद्धालुओं की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध

महाराजा प्रदीप प्रकाश ने तुरंत जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निर्माण का कार्य आरंभ करवाकर सन् 1630 में पूरा किया। इस सिद्ध पीठ में विकास कार्यों को करवाने के लिए मंदिर न्यास समिति का गठन किया गया। जिसके द्वारा यात्रियों की सुविधा के लिए तथा यहां पर अन्य जनहित के कार्य करवाए जा रहे हैं। मंदिर में आग्नेय, धारदार हथियार उठाने तथा विस्फोटक सामग्री को लाने जे लाने और नारियल चढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। मेले में सफाई व्यवस्था के लिए व्यापक प्रबंध किए गए। जिसको लेकर हर वर्ष प्रशासन की ओर से अब श्रद्धालुओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं।

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