Saint Ram Bahubali Das

Maha Kumbh 2025 : पंजाब से साइकिल पर महाकुंभ में पहुंचे Saint Ram Bahubali Das, जानिए अघोरी से पेड़ बाबा बनने तक की दिलचस्प कहानी

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Maha Kumbh 2025 : प्रयागराज में सबसे बड़े पर्व महाकुंभ की आज से शुरआत हो चुकी है। देश और दुनिया से जहां लाखों लोग गंगा में श्रद्धा की डुबकी लगाने पहुंच चुके है। वहीं आज से लोगों का प्रयागराज आना शुरु हो जाएगा। गंगा में डुबकी लगाने के लिए Saint Ram Bahubali Das पंजाब से सैकड़ों किलो मीटर का सफर साइकिल से तय कर प्रयागराज पहुचें । जहां वे कुंभ में श्रद्धा की डुबकी लगायेंगे।

पंजाब से साइकिल से सफर कर प्रयागराज आने को लेकर बाहुबली बाबा का मानना है कि इससे लोगों में पर्यावरण बचाने को जागरुकता फैलेगी। जिस जागरुकता से लोग वाहन का इस्तेमाल कम करके साइकिल जैसी चीजों का इस्तेमाल करेंगे।

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दरअसल, बाबा का मुख्य उद्देशय त्रिवेणी पौधरोपण( पीपल, बरगद और पाकड़ के पेड़ो का रोपण) को बढ़ावा देना है। उनका मानना है कि ये पेड़ न केवल पर्यावरण को स्वच्छ और शुद्ध बनाते हैं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का भी स्त्रोत होते हैं। बाबा हर स्थान पर पौधा लगाकर उसका यज्ञोपवीत संस्कार करते हैं और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों को सौंपते हैं।

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एक मीडिया चैनल से बातचीत में बाबा ने बताया कि मां-बाप बचपन में गुजर गए। जीवन साधु-संतों के बीच ही बीता। शुरुआती दौर में वह वाराणसी के श्मशान घाट हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट पर अघोरियों की संगत में रहे।

अघोरियों जैसी वेशभूषा भी रही। श्मशान चिता की लकड़ी पर भोग प्रसाद बनाया, लाशों को जलाने में सहयोग किया श्मशान घाट की सफाई की। अघोरियों के साथ बैठकर खाना भी किया। घोर अघोर की संगत में महाभोग को समझा, लेकिन जल्दी ही उन्हें लगा कि वह जिस ज्ञान और शांति गुरु सेवा की खोज में निकले हैं, वह कहीं और है।

पर्यावरण बाबा ने बताया कि मास कम्युनिकेशन से ग्रेजुएशन करने के बाद बालक दास महाराज से गुरु दक्षिणा लेकर संन्यास के मार्ग पर चल पड़े। गुरुमुखी होकर वैष्णव पंथ से जुड़ा। स्वामी शिवानंद पहले गुरु बने। महाराष्ट्र में दर्शन संन्यास को समझा। शुरुआत में मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल नॉर्थ साउथ की तरफ रहे।

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वहां परशुराम कुंड में स्थित आश्रम से गोवंश की चोरी हो गई, जिससे गुरुजी काफी दुखी हुए थे। उन्होंने बताया कि चोरी हुई गोवंश की हत्या की गई। ऐसी घटनाएं उस क्षेत्र में आए दिन होती थीं। इस घटना से मुझे लगा कि वह अब भी वह जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां असुर भी हैं। गुरु जी के मार्गदर्शन में यहीं से उन्होंने प्रकृति पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठा लिया।

शुरुआती दौर में वह काफी आक्रामक रूप से गोवंश की रक्षा के लिए कूद पड़ते थे। कई बार काफी विवाद हुआ। जिसकी वजह से जीवन पर भी संकट आया। इलाज के लिए हॉस्पिटल में भी रहना पड़ा। धीरे-धीरे जीवन में परिवर्तन आया और उत्तर भारत हिमालय पहुंच गए। मानव, जीव जंतु के जीवन, पर्यावरण संरक्षण को ही अब सेवा बनाकर चल रहे हैं। इसके बाद से अब वह साइकिल यात्रा के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने में लगे हैं।

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हिमाचल से महाकुंभ पहुंचे पर्यावरण बाबा
उन्होंने कहा कि यदि प्रकृति को लेकर हम समय से सजग नहीं हुए तो आने वाले वंशजों को हम कुछ नहीं दे पाएंगे और मानवता अपना मूल खो बैठेगी। यही कारण है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए वे हिमाचल से पंजाब के रास्ते साइकिल यात्रा करके संगम पहुंचे हैं। इस दौरान रास्ते में जितने भी जिले गांव पड़े, वहां पौधे लगाते लोगों को जागरूक करते हुए यहां तक पहुंचे हैं।

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अब तक 25 हजार किलोमीटर साइकिल से यात्रा कर चुके हैं
उन्होंने बताया कि विरक्त हो संन्यास को जिया, घनघोर जंगल, हिमालय की कंदराओं में वर्षों रहे। इसी बीच जर्नलिज्म की डिग्री हासिल की। अपनी पुस्तक ‘प्रकृति से परमात्मा की ओर’ भी लिखी, पर बहुत प्रचारित प्रसारित नहीं हो पाई। पर्यावरण बाबा ने बताया कि वह साइकिल से हिमाचल से 1500 किलोमीटर की यात्रा कर महाकुंभ क्षेत्र पहुंचे हैं। अब तक करीब 25 हजार किलोमीटर की यात्रा साइकिल से कर चुके हैं।

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