उत्तर प्रदेश के बिरहाना रोड पर स्थित कानपुर जिले में तपेश्वरी देवी मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां भक्त जब अखंड ज्योति जलाते हैं, तो माता भगवती उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। यहां पर लोग अपने बच्चों का मुंडन भी कराते हैं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
बता दें कि कानपुर शहर के इस मंदिर में नवरात्रों में भव्य मेला आयोजित होता है। यह मेला खासतौर पर महिलाओं के लिए होता है, जहां वे अपने दैनिक उपयोग की वस्तुओं से लेकर श्रृंगार की वस्तुओं तक कुछ भी खरीद सकते हैं। नवरात्र के समय माता के 108 नामों का जप करने से पद, प्रतिष्ठा और ऐश्वर्य की कामना पूरी होती है। तपेश्वरी मंदिर के पास वैभव लक्ष्मी मंदिर भी है, जहां प्रतिवार शुक्रवार को खजाना बांटा जाता है। इस मंदिर में लोग भीड़ में आते हैं, ताकि वे इस खजाने का हिस्सा बन सकें। प्रशासन भी मेले की भीड़ और सुरक्षा का ध्यान रखता है। कैमरे और लाउडस्पीकर्स लगे होते हैं और भक्तों को ध्यान में रखते हुए वे धार्मिक कार्यों को सरलता से संचालित करते हैं।

रामायण युग के साक्ष्य आज भी मौजूद
तपेश्वरी मंदिर के प्राचीनतम इतिहास से विषय में वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्ति के बाद अयोध्या वापस लौटे तो उनकी प्रजा में से कुछ लोगों ने माता सीता की पवित्रता को लेकर के ताने मारने शुरू कर दिए। जिस से आहात होकर भगवान श्रीराम ने माता सीता का त्याग दिया था। जिसके बाद लक्ष्मण माता जानकी को ब्रह्मावर्त स्थित वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़ गए थे, ये स्थान कानपुर के बिठूर में स्थित है। जहां रामायण युग के साक्ष्य आज भी वैसे के वैसे ही हैं।

लव-कुश का यही हुआ था मुंडन
कहते हैं आज जहां तपेश्वरी माता का मंदिर स्थित है, वहां पर रामायण काल में घना जंगल हुआ करता था और मां गंगा भी वहीं से बहती थी। तब माता सीता ने इस स्थान पर पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए तप किया था। ऐसी मान्यता है कि माता सीता के तप से ही तपेश्वरी माता प्रकट हुईं थी। तभी से इस मंदिर का नाम तपेश्वरी मंदिर पड़ा। वहीं लव कुश के जन्म के बाद माता सीता ने देवी मां के समक्ष ही अपने दोनों पुत्रों का मुंडन कराया था। तब से लेकर आज तक लोग अपने बच्चों का मुंडन इस मंदिर में करवाते चले आ रहे हैं।

