Haryana Politics : हरियाणा के ट्रेजडी किंग कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह आज रविवार को परिवार के साथ कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। वह जिला जींद में समर्थकों के साथ अहम बैठक करने जा रहे हैं। बैठक का निर्णय हिसार सीट से पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह का नाम कटने के बाद लिया गया। यह बैठक सुबह 11 बजे एक निजी होटल में होगी। जिसमें बीरेंद्र सिंह के साथ उनकी धर्मपत्नी प्रेमलता सिंह और बेटा एवं पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह मौजूद रहेंगे। इस दौरान लोकसभा चुनाव में प्रभावी भूमिका पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। देखने की बात है कि बीरेंद्र सिंह का ऊंट आज किस करवट बैठेगा।
बताया जा रहा है कि हिसार लोकसभा सीट से सांसद बृजेंद्र सिंह की टिकट कटने के बाद आज जींद में अहम बैठक होने जा रही है। जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह परिवार के साथ कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। बता दें कि हरियाणा के ट्रेजडी किंग कहे जाने वाले बीरेंद्र सिंह गत दिनों भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। इससे कुछ दिन पहले ही उनके बेटे ने भी भाजपा को अलविदा कहते हुए कांग्रेस का हाथ थामा था। इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार या सोनीपत लोकसभा सीट पर चुनावी रण में उतार सकती है।
वहीं कांग्रेस ने वीरवार देर रात हरियाणा की 8 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम उजागर किए। इस लिस्ट में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए बीरेंद्र सिंह को कांग्रेस की ओर से ठेंगा दिखा दिया गया। टिकट के चक्कर में भाजपा छोड़कर आए बीरेंद्र सिंह और बृजेंद्र सिंह पर कांग्रेस ने भी भरोसा नहीं किया है। ऐसे में बीरेंद्र सिंह ने आज रविवार को जींद में अपने समर्थकों के साथ अहम बैठक करने का फैसला लिया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बैठक में बीरेंद्र सिंह कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।
इससे पहले अटकलें लगाई जा रही थी कि कांग्रेस बृजेंद्र सिंह को उनके पुराने लोकसभा क्षेत्र हिसार से चुनावी मैदान में उतार सकती है। आपात स्थिति में सोनीपत से भी बृजेंद्र सिंह को चुनावी रण में उतारे जाने की बात उठी थी। वहीं पिछले कुछ दिनों से बीरेंद्र सिंह व उनके सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह ने भी चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। फिर कांग्रेस की लिस्ट जारी होने पर पिता-पुत्र के हाथ केवल मायूसी लगी।
बता दें कि बीरेंद्र सिंह भी प्रदेश के उन नेताओं में से हैं, जिनका मुख्यमंत्री बनने का सपना आज तक अधूरा है। हरियाणा की राजनीतिक के ट्रेजडी किंग की किस्मत ने कभी साथ नहीं दिया। बीरेंद्र सिंह ने अपना पहला चुनाव उचाना से 1977 में लड़ा और वह जीत हासिल करते हुए विधायक बने थे।
बता दें कि बीरेंद्र सिंह को कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की टीस हमेशा से रही। वह खुद कई बार अलग-अलग मंचों से इसका जिक्र भी करते रहे। वर्ष 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मतभेद के चलते वह केंद्र की राजनीति में चले गए। वर्ष 2010 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया, लेकिन केंद्र में मंत्री बनते-बनते रह गए। हालांकि कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाने के बाद कई अहम राज्यों का प्रभारी जरूर बनाया। वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की लहर के चलते बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस से अपना 43 साल पुराना नाता तोड़ लिया। बीरेंद्र सिंह ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले 16 अगस्त 2014 को भाजपा का दामन थामा था।
इसके बाद बचे हुए 2 साल के कार्यकाल में वह भाजपा की तरफ से फिर से राज्यसभा सांसद बने। वर्ष 2014 में पहली बार बीरेंद्र सिंह को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्र में मंत्री बनाया गया। उन्हें काफी हेवीवेट ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय और पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय का प्रभार दिया गया। उनकी पत्नी प्रेमलत्ता ने उचाना सीट से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ते हुए दुष्यंत चौटाला को हराया। माना जाता है कि वर्ष 1991 में बीरेंद्र सिंह का मुख्यमंत्री बनना तय था, लेकिन राजीव गांधी की हत्या हो गई। साथ ही बीरेंद्र सिंह के सितारे गर्दिश में चले गए और कांग्रेस हाईकमान ने 23 जुलाई 1991 को उनकी जगह भजनलाल को मुख्यमंत्री बना दिया।