जीवन के दुखों को दूर करने के लिए पुर्णिमा के दिन करें ये व्रत, जानिए व्रत कथा की महिमा

धर्म

हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के अगले दिन पूर्णिमा तिथि पड़ती हैं। सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता हैं। सावन के महीने में आने के कारण इसे श्रावणी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पूर्णिमा के इस विशेष अवसर पर श्रीसत्नारायण भगवान की पूजा और कथा करना शुभ माना जाता हैं।

सावन माह की शुक्ल पक्ष की दूसरी पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को पड़ रही है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा और व्रत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। सावन माह में आने के कारण पुर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है।

श्री सत्नारायण की कथा

एक बार योगी नारद जी ने भ्रमण करते हुए धरती के प्राणियों को अपने-अपने कर्मो के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते हुए देखा। इससे उनका हदय दुखी हो गया और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्री विष्णु के पास क्षीण सागर में पहुंच गए और बड़ी ही सहजता से बोले, हे नाथ अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो धरती के प्राणियों के दुखों को दुर करने के लिए कोई उपाय बताने की कृपा करें।

तब भगवान विष्णु ने कहा, हे वत्स तुमने विश्व के कल्याण की भावना से बहुत ही सुंदर प्रश्न किया है। भगवान विष्णु कहते है कि मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है औऱ महान पुण्य दायक है। जो मोह के बंधनो से छुटकारा दिलाने वाला है। जो भी व्यक्ति श्रीसत्यानारायण व्रत को विधि विधान से करता है उसे संसार के सारे सुखों की प्राप्ति होती है और परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्री सत्यनारायण कथा की महिमा

श्री सत्यनारायण कथा के अनुसार, एक शतानंद नाम का बहुत ही गरीब ब्राहम्ण था। वह अपने परिवार का पेट भरने के लिए भिक्षा मांगता था। ब्राहम्ण ने सत्यनारायण का व्रत किया औऱ पूरी विधि से पूजा पाठ की। इसके बाद ब्राहम्ण को सुख की प्राप्ति हुई और वो अंतकाल तक सत्यपुर में प्रवेश कर गया। ठीक उसी तरह एक काष्ठ विक्रेता भील और राजा उल्कामुख भी सत्यनारायण का व्रत और विधिपूर्वक पूजा करते थे। यह व्रत करने से इन्हें भी दुखों से मुक्ति मिल गई।

सत्यनारायण के व्रत की पूजा विधि

जो व्यक्ति सत्यनारायण जी की पूजा का सकंल्प लेता है उसे दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजा के स्थान को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएं और उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों तरफ केले के पत्ते लगाएं। इसके बाद सत्यनाराय़ण जी की तस्वीर को चौकी में रखें। पूजा करते समय सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें और इसके बाद इन्द्रादि, दशदिक्पाल और फिर श्री राम-सीता और लक्ष्मण, राधा-कृष्ण की पूजा करें।

इसके बाद श्री सत्यनारायण जी की पूजा करें। पूजा में केले के पत्ते और फल के अलावा पंचामृत, पंच गव्य, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली कुमकुम और दूर्वा की भी आवश्यकता होती है जिनसे भगवान जी की पूजा की जाती है। सत्यनारायण जी की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्र और मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है। यह पंचामृत भगवान जी को काफी पंसद हैं। सत्यनारायण जी को प्रसाद के तौर पर फल-मिठाई के अलावा आटे की पंजीरी का भी प्रसाद लगाया जाता है।

भगवान श्री सत्यनारायण जी का व्रत और पूजा करने का हर व्यक्ति को समान अधिकार है चाहे वो गरीब, अमीर, राजा हो या व्यावसायी, ब्राहम्ण हो या अन्य वर्ग, स्त्री हो या पुरुष हर कोई इस व्रत को रख सकता हैं। जो भी व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वाश के साथ रखता है उसके सारे दुख दुर हो जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *