Sadhana remains there even after attaining the goal: Radhe Radhe Maharaj

Panipat : साधना की अपनी स्वतंत्रता और अनवरत् एवं अखण्ड, साध्य प्राप्ति के बाद भी साधना अवस्थित : Radhe Radhe Maharaj

धर्म पानीपत

Panipat : श्री अवध धाम सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित श्री अवध धाम मंदिर(Avadh Dham Temple) वार्षिक महोत्सव एवं श्रीमद् भागवत कथा सत्संग समारोह के पंचम दिवस पर प्रसिद्ध कथा वाचक भागवत रसिक पंडित राधे-राधे महाराज(Radhe Radhe Maharaj) ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि साधना की एक अपनी स्वतंत्रता होती है और वह अनिवर्त है।

उन्होंने कहा कि साधना शब्द इतना सरल है, लेकिन उसको पाना उतना ही कठिन है। साधना शक्ति से प्राप्त की जा सकती है और शक्ति परमात्मा की भक्ति से प्राप्त हो सकती है। जवाब भक्ति में प्रबल हो जाएंगे का तंबल बढ़ेगा और आत्मबल से आप साधना को संपन्न कर सकते हैं। राधे-राधे महाराज ने व्यास मंच से कहा कि गुरु अगर साधना के पथ का प्रदर्शक हो जाए तो इससे बड़ी साधना की परिपक्वता दूसरी नहीं हो सकती। साधक के जीवन में साधना की परिपूर्णता केवल साध्य की प्राप्ति में नहीं है, क्योंकि साधना के प्रति स्वतन्त्र अपना मोह है। साधना साध्य की प्राप्ति के बाद भी बड़ी पूर्ण है।

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राधे राधे महराज ने फरमाया कि भगवत् प्राप्ति के बाद भी साधु भजन ही करता है। भगवान श्रीराम शबरी को ये उपदेश दे रहे हैं। भक्ति के पथ पर चलकर जिसकी प्राप्ति होती है, वो स्वयं उसे जो पा चुकी है, उसे इस विषय में बता रहा है। राम भक्ति का लक्ष्य हैं और शबरी राम को पा चुकी है और फिर राम कह रहे हैं। इस अवसर पर गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञाननंद महाराज का दाऊजी महाराज ने अभिनंदन किया एवं विकास मंच पर विराजमान स्वामी ज्ञानानंद महाराज को विशाल उड़ाकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में सहकारिता मंत्री महिपाल ढांडा ने शिरकत की। अवध धाम सेवा समिति ने मंत्री महिपाल ढांडा का अभिनंदन किया।

भजन की अपनी अनिवार्यता सदैव

राधे राधे महराज ने कहा कि एक बात समझने वाली है, भजन की अपनी अनिवार्यता सदैव है। वृन्दावन जाने का लक्ष्य केवल भगवत् प्राप्ति तक नहीं है, बल्कि सच कहूं जिस दिन वृन्दावन की बीथी में श्रीठाकुरजी मिल गए शायद असली वृन्दावन जाना तब से शुरू हुआ, उससे पहले तो भूमिका थी।

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जीवन में साधना का अनुपालन प्रसन्नता का आधार : ज्ञानानंद

ज्ञानानंद महाराज ने आए हुए सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि साधना की अपनी स्वतंत्रता है और वो अनवरत् है। अखण्ड है। साध्य की प्राप्ति के बाद भी साधना अवस्थित रहती है और विकसित होती है और स्थापित हो जाती है। भोग तब तक ही नहीं लगाया जाता, जब तक श्रीठाकुरजी न खाए। जिस दिन तुम्हारी लगी हुई थाली से उठा लिया, उससे पहले लगाते थे, अब खिलाओगे। साधक के जीवन में साध्य की प्राप्ति साधना का इतना बड़ा प्रमाण नहीं है, बल्कि साधक के जीवन में साधना का दृढ़ता से अनुपालन होना ही उसके जीवन में प्रसन्नता का आधार है।

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