भगवान Shiv जिन्हें भोलेनाथ और महादेव के नाम से भी जाना जाता है। वह हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक है। उनकी कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ऐसे भगवान हैं जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है और जब वह अपने किसी भक्त से प्रसन्न होते हैं और उसके जीवन में हर रही सभी परेशानियों को दूर कर देते हैं। हिंदू धर्म में जहां अन्य देवी-देवता सोने के आभूषणों में दिखाया गया है, वहीं भगवान शिव के गले में सांपों की माला, सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है।
भोलेनाथ के शरीर पर भस्म लगी होती है। ये सभी चीजें इन्हें सभी देवी देवताओं से अलग दर्शाती है, लेकिन कई बार लोगों के मन में यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर भगवान शिव के मस्तक पर चंद्र देवता यानि चंद्रमा क्यों विराजमान है। भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा का विराजमान होना एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पौराणिक घटना है, जो शिव की महिमा और उनके दयालु स्वभाव को दर्शाती है।
पौराणिक कथा
भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा के विराजमान होने से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार राजा दक्ष की 27 पुत्रियां थी। राजा दक्ष ने अपनी 26 पुत्रियों का विवाह चंद्रदेव से कर दिया था। उन्होंने चंद्रदेव के सामने शर्त रखी कि वह अपनी सभी पत्नियों के साथ एक जैसा व्यवहार करेंगे। चंद्र देव अपनी पत्नी रोहिणी के सबसे करीब थे। इसी कारण चंद्रदेव का अधिकतर समय रोहिणी के साथ बीतता था, जिससे बाकी पत्नियां दुखी और निराश रहने लगीं। जिस वजह से चंद्रदेव की अन्य पत्नियों ने अपने पिता राजा दक्ष से चंद्रदेव की शिकायत कर दी।
चंद्रदेव को श्राप
राजा दक्ष ने चंद्रदेव को इस अनुचित व्यवहार के लिए चेतावनी दी, लेकिन चंद्रदेव ने अपने आचरण में कोई परिवर्तन नहीं किया। इससे क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि वह धीरे-धीरे कमजोर होकर समाप्त हो जाएंगे। श्राप के प्रभाव से चंद्रमा की रोशनी कम होने लगी, और वे धीरे-धीरे कमजोर होने लगे। अपने अस्तित्व के संकट से भयभीत होकर चंद्रदेव सभी देवताओं के पास मदद के लिए पहुंचे, लेकिन कोई भी उनकी मदद नहीं कर सका।
जिसके बाद नारद मुनि ने चंद्रदेव से भगवान शिव की अराधना करने को कहा। जिसके बाद चंद्रदेव ने सच्चे मन से भगवान शिव की अराधना की। उनकी अराधना से भगवान शिव बड़े प्रसन्न हुए और चंद्रदेव को अपने मस्तक पर स्थान दिया और कहा कि जब तक वे उनके मस्तक पर रहेंगे, वे सुरक्षित और उज्ज्वल बने रहेंगे। शिव के आशीर्वाद से चंद्रदेव का श्राप प्रभावहीन हो गया, लेकिन श्राप के नियम के अनुसार चंद्रमा का घटना और बढ़ना (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) जारी रहेगा, जिससे चंद्रमा को अमरत्व भी प्राप्त हुआ।