हरियाणा में एक शिक्षक के परिवार जन्मे योगेश्वर दत्त ने 13 साल की उम्र में 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस को कांस्य पदक जीतते हुए देखा। उन्होंने अपने पिता से ओलंपिक के बारे में जाना और तय किया कि एक दिन मैं भी लिएंडर पेस की तरह देश का नाम रोशन करूंगा।
इस घटना के आठ साल बाद 2004 में योगेश्वर को पहली बार एथेंस ओलंपिक में भाग लेने का मौका मिला। उनका मुकाबला दो बार के ओलंपियन और चार बार के विश्व चैंपियन से था। योगेश्वर का सपना पूरा न हो सका।
हार के बावजूद योगेश्वर ने हिम्मत नहीं हारी और फिर से तैयारी में जुट गए। अगले ओलंपिक से पहले 2008 के एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने बीजिंग ओलंपिक के लिए अपनी जगह पक्की कर ली। इस बार भी उनका सपना क्वार्टर फाइनल में टूट गया।
योगेश्वर की तैयारी जारी थी और उसका असर भी दिख रहा था। लंदन ओलंपिक 2012 से पहले 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक जीत कर साबित कर दिया था कि टाइगर अभी जिंदा है।
इस दौरान उन्हें घुटने में गंभीर चोट लगी और उनके सामने करियर खत्म होने का खतरा मंडराने लगा था। लंदन ओलंपिक के अहम मुकाबले में उन्हें आंख पर गंभीर चोट लगी। योगेश्वर ने हिम्मत नहीं हारी और इस बार वह अपनी जिद पूरी करके ही माने। योगेश्वर ने 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीत अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया।
| जन्म | 2 नवंबर 1982, बैंसवाल कलां, सोनीपत, हरियाणा |
| शिक्षा | राम मेहर, सुशीला देवी |
| पत्नी | शीतल शर्मा |
| उपलब्धि | पद्मश्री पुरस्कार: 2013, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार: 2012, अर्जुन पुरस्कार: 2012 |

