➤प्रो. असीम घोष ने सोमवार को हरियाणा के 19वें राज्यपाल के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली।
➤शपथ समारोह में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू ने उन्हें शपथ दिलाई; मुख्यमंत्री नायब सैनी भी मौजूद रहे।
➤घोष, जो वाजपेयी के करीबी और भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे हैं, अब तक पार्टी के वैचारिक स्तंभ माने जाते रहे हैं।
हरियाणा को सोमवार को उसका 19वां राज्यपाल मिल गया। प्रो. असीम घोष ने चंडीगढ़ स्थित राजभवन में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की उपस्थिति में पद और गोपनीयता की शपथ ली। घोष ने शपथ अंग्रेजी में पढ़ी। शपथग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

14 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने घोष की नियुक्ति की घोषणा की थी। वे बंडारू दत्तात्रेय की जगह इस पद पर आए हैं, जिनका कार्यकाल हाल ही में पूरा हुआ।
शपथ के बाद घोष ने कहा, “यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है। मैं पूरी ईमानदारी और लगन से हरियाणा के लोगों की सेवा करूंगा।”

राजभवन में शपथग्रहण समारोह की शुरुआत राष्ट्रगान से हुई। घोष ने शपथ लेने के बाद दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए और फिर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारियों से मुलाकात की। इसके बाद मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि वे प्रदेश की जनता, प्रशासन और विपक्ष—सभी के साथ मिलकर समन्वय से काम करेंगे।

असीम घोष का राजनीतिक और वैचारिक सफर
प्रो. असीम घोष एक लंबे समय से भाजपा से जुड़े रहे हैं और उन्हें पार्टी का वैचारिक चेहरा भी कहा जाता है। वे उत्तर कोलकाता के श्री शिक्षायतन कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे हैं। 1999 से 2002 तक वे भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष रहे। 2013 में उन्होंने हावड़ा लोकसभा सीट से उपचुनाव भी लड़ा, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
घोष को अटल बिहारी वाजपेयी का करीबी माना जाता था। वाजपेयी ने ही उन्हें राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने को प्रेरित किया था। घोष ने पश्चिम बंगाल में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक जड़ों को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीते दो दशकों से वे सक्रिय राजनीति से दूर थे लेकिन भाजपा के मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बने रहे।

घोष का आगमन और प्राथमिकताएं
घोष शनिवार को ही चंडीगढ़ के राजभवन पहुंच चुके थे। मुख्यमंत्री नायब सैनी और पंचायत मंत्री कृष्ण लाल पंवार ने उनका स्वागत किया था। इस दौरान घोष ने मीडिया से कहा था, “हरियाणा के महान लोगों की सेवा करना मेरी पहली प्राथमिकता होगी। प्रशासन और मुख्यमंत्री के सहयोग से आमजन को अधिकतम लाभ पहुंचाना मेरा ध्येय रहेगा। विपक्ष की राय को भी मैं सम्मानपूर्वक सुनूंगा।”
बंडारू दत्तात्रेय का कार्यकाल
पूर्व राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के कार्यकाल के दौरान हरियाणा में कई बड़े राजनीतिक घटनाक्रम हुए। जजपा का समर्थन वापसी, मनोहर लाल खट्टर मंत्रिमंडल का इस्तीफा, नायब मंत्रिमंडल का गठन और भाजपा सरकार का पुनर्गठन—इन सभी घटनाओं में दत्तात्रेय ने राजभवन की भूमिका निभाई।
हरियाणा के पूर्व राज्यपालों की सूची
हरियाणा के अब तक के राज्यपालों की सूची और विशेषताएं:
1 धर्मवीरा (1966–1967): पहले राज्यपाल, ICS अधिकारी, पर्वतारोहण में रुचि।
2 बीएन चक्रवर्ती (1967–1976): लंबे कार्यकाल वाले राज्यपाल, अंतिम संस्कार कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में।
3 रंजीत सिंह नरूला (1976): लाहौर में पले-बढ़े, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे।
4 जयसुख लाल हाथी (1976–1977): गुजरात से, वकील और सांसद भी रहे।
5 हरचरण सिंह बराड़ (1977–1979): राजनीति में सक्रिय, बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बने।
6 सुरजीत सिंह संधवालिया (1979–1980): एक्टिंग गवर्नर और पटना हाईकोर्ट के CJ भी रहे।
7 गणपति राव तपासे (1980–1984): पुणे से, ताऊ देवीलाल से विवाद में चर्चित रहे।
8 सैयद मुजफ्फर हुसैन बर्नी (1984–1988): आईएएस, लेखक, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी रहे।
9 हरि आनंद बरारी (1988–1990): IPS अधिकारी, IB के प्रमुख, योग प्रेमी।
10 धनिक लाल मंडल (1990–1995): जेपी आंदोलन के कार्यकर्ता, बाद में सक्रिय राजनीति में लौटे।
11 महाबीर प्रसाद (1995–2000): यूपी से, गांव के सरपंच से राजनीति शुरू की।
12 बाबू परमानंद (2000–2004): जम्मू-कश्मीर से, वित्त मंत्री रहे।
13 ओपी वर्मा (2004): कार्यवाहक राज्यपाल, हाईकोर्ट CJ और मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष रहे।
14 एआर किदवई (2004–2009): शिक्षाविद, जामिया मिलिया व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े।
15 जगन्नाथ पहाड़िया (2009–2014): 27 देशों की यात्रा की, कोविड से निधन हुआ।
16 कप्तान सिंह सोलंकी (2014–2018): भिंड, मप्र से, अन्य राज्यों के राज्यपाल का कार्यभार भी संभाला।
17 सत्यदेव नारायण आर्य (2018–2021): बिहार से, खान मंत्री और आर्य समाज अनुयायी।
18 बंडारू दत्तात्रेय (2021–2025): हैदराबाद से, आपातकाल में जेल गए, कई बार सांसद रहे।
घोष के सामने अब प्रशासनिक समन्वय, संवैधानिक दायित्व और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी है। उनके पास वैचारिक दृढ़ता और प्रशासनिक अनुभव दोनों हैं, जो उन्हें एक सक्षम राज्यपाल के रूप में स्थापित कर सकते हैं।