- माइक्रोप्लास्टिक अंटार्कटिका से मानव रक्त और मस्तिष्क तक पहुंच चुका है, जिससे कैंसर और क्रॉनिक बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
- वैज्ञानिकों ने चेताया- माइक्रोप्लास्टिक फेफड़ों को नुकसान पहुंचाकर लंग कैंसर तक का कारण बन सकता है।
- बच्चों और गर्भस्थ शिशुओं पर भी माइक्रोप्लास्टिक का गंभीर असर, पाचन से लेकर मानसिक विकास तक प्रभावित।
दुनिया भर में फैलते माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण ने अब बेहद खतरनाक मोड़ ले लिया है। यह सिर्फ पर्यावरण नहीं बल्कि अब मानव शरीर को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है। हाल के शोधों और रिपोर्टों से सामने आया है कि माइक्रोप्लास्टिक अंटार्कटिका की बर्फ, महासागरों की गहराइयों, पहाड़ों, मिट्टी, हवा, पानी और यहां तक कि मानव रक्त, मस्तिष्क और फेफड़ों तक में अपनी पैठ बना चुका है। यह स्थिति वैश्विक स्वास्थ्य संकट का संकेत दे रही है।
मानव शरीर में हर सप्ताह 5 ग्राम तक प्लास्टिक
विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि आज हर व्यक्ति औसतन एक सप्ताह में लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है। ये छोटे-छोटे प्लास्टिक के टुकड़े हवा, पानी, भोजन और यहां तक कि टेबल सॉल्ट तक में पाए जा रहे हैं।
फेफड़ों को पहुंचा रहे गंभीर नुकसान
‘लैंसेंट प्लैनेटरी हेल्थ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक शरीर में सूजन (inflammation) और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ा सकते हैं, जिससे कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है। ‘जर्नल ऑफ हैज़र्डस मैटेरियल्स’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह पुष्टि हुई है कि पॉलीस्टायरीन से बने नैनोप्लास्टिक कण, जो आमतौर पर खाद्य पैकेजिंग में उपयोग होते हैं, फेफड़ों की स्वस्थ कोशिकाओं को डीएनए क्षति और कैंसर जैसी स्थितियों की ओर ले जा सकते हैं।
दूध के कप से मौत की ओर
ऑस्ट्रिया स्थित मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जो प्लास्टिक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है — जैसे दही के कप, प्लास्टिक की बोतलें, खाने की पैकिंग — वे अब गंभीर जैविक खतरे बन चुके हैं। इनसे निकलने वाले सूक्ष्म कण हवा में घुलकर सांसों के साथ शरीर में प्रवेश कर रहे हैं और फेफड़ों में कैंसर संबंधी परिवर्तन पैदा कर सकते हैं।
बच्चों और शिशुओं पर बढ़ता खतरा
शोध में यह भी पाया गया है कि प्लास्टिक की बोतलों और अन्य सामग्रियों से शिशुओं में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है। स्वीडन के कार्लस्टेड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्ल गुस्ताफ बोर्नहैग के अनुसार, प्लास्टिक में मौजूद बिस्फेनॉल एफ जैसे रसायन बच्चों की दिमागी क्षमता और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित कर सकते हैं।
अन्य स्वास्थ्य खतरे:
- यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के 2022 के शोध के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक आंतों की परत को कमजोर कर सकता है, जिससे पाचन संबंधित समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
- ‘एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया कि गर्भावस्था के दौरान माइक्रोप्लास्टिक भ्रूण तक पहुंच सकता है, जिससे गर्भ से जुड़ी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।
इन सभी तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि माइक्रोप्लास्टिक केवल एक पर्यावरणीय चिंता नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर मंडरा रहा एक अदृश्य खतरा है। यह न केवल नीतिगत बदलावों की मांग करता है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए जागरूकता और सतर्कता का आह्वान भी करता है।