वृद्ध आश्रम में बुजुर्ग मां बापों ने धूमधाम से मनाया राखी का त्यौहार

सोनीपत

सोनीपत : औलाद द्वारा ठुकराए हुए बुजुर्ग मां बापों ने वृद्ध आश्रम में राखी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया है। अपनी जिंदगी के 60 से ज्यादा सावन बिताने के बाद अब उन्हें अपनों का सहारा नहीं मिल रहा है। जहां संतान में मान सम्मान नहीं दिया तो वृद्ध आश्रम का सहारा ले लिया। वृद्ध आश्रम को ही अब अपना परिवार मानकर हर त्यौहार खुशी से मनाते हैं, घर छोड़ चुके बुजुर्गों ने नम आंखों के साथ अपनी औलाद द्वारा घर से निकाले जाने का दर्द साफ झलक रहा था।

इंसान जिंदगी भर अपनी संतान को सफल करने में लगा देता है और जब संतान सफल हो जाती है, तो अपने बूढ़े मां-बाप को घर से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं, सोनीपत के वेस्ट रामनगर में स्थित समाज कल्याण समिति द्वारा संचालित वृद्ध आश्रम को आनंद कुमार पिछले लंबे अरसे से चला रहे हैं और यहां पर हरियाणा, पंजाब और दिल्ली से बुजुर्ग अपना घर मानकर एक साथ खुशी से रहते हैं।

पंजाब में एक भाई को छोड़ा, नए परिवार में मिले बहुत सारे भाई

रक्षाबंधन के त्योहार पर बुजुर्ग महिलाओं ने पुरुष भाइयों को उनकी कलाई पर राखी का पवित्र बंधन बांधा है और वही माथे पर तिलक कर मिठाई भी खिलाई है। वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने अपनी दास्तान बताते हुए बताया कि परिवार में एक भाई को पंजाब में छोड़कर आई है, तो अब नए परिवार में बहुत सारे भाई मिल गए हैं और आज उनके साथ बड़ी खुशी के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया गया है।

बच्चों को विवाहित होने के बाद बुजुर्ग लगते है बोझ

वहीं यूपी के रहने वाले बुजुर्ग ने भी नाम आंखों के साथ बताया कि उन्होंने अपनी संतान के लिए प्राइवेट नौकरी के साथ-साथ खेती-बाड़ी बिकी है, लेकिन आज बच्चे बड़े हो गए और विवाहित होने के बाद बुजुर्ग उन्हें बोझ लगते हैं। इस पीड़ा को लेकर बुजुर्ग परिवार के बीच रह नहीं पा रहे थे, इसीलिए उन्होंने घर छोड़कर आश्रम को अपना घर अपना लिया।

इज्जत न होने से ली आश्रम की पनाह

वही सोनीपत के ही गोहाना रोड पर खल बिनोला की दुकान चलाने वाले बुजुर्ग कभी अच्छा कारोबार करते थे और इसी कारोबार से उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर सफल और विवाहित किया है, लेकिन आज शादी होने के बाद परिवार में उनकी इज्जत नहीं है, इसीलिए घर छोड़कर आश्रम में पनाह ली है। इस प्रकार बुजुर्गों ने अपना बारी-बारी से दर्द रखा और आधुनिकता के इस दौर में जहां औलाद संस्कार विहीन हो रही है और ऐसे में हम बुजुर्गों को पीछे छोड़ रहे हैं, जो समाज के लिए करारा तमाचा है।

एक घर को छोड़कर बसा लिया नया घर

वही बुजुर्गों को आश्रम में हर प्रकार की खाने-पीने की व्यवस्था रहती है और रहने सोने के लिए भी तमाम प्रकार के इंतजाम मुकम्मल है और सभी एक परिवार की तरह रहते हैं और आज एक घर को छोड़कर नया घर बसा लिया है। जहां देश के अलग-अलग राज्यों से आए हुए बुजुर्ग एक छत के नीचे खुशी-खुशी रह रहे हैं।