भारतीय महिला पहलवान अंतिम पंघाल ने गुरुवार को सर्बिया के बेलग्रेड में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप 2023 में महिलाओं की 53 किग्रा स्पर्धा में स्वीडन की दो बार की यूरोपीय चैंपियन एम्मा जोना डेनिस मालमग्रेन को हराकर कांस्य पदक जीता। वीरवार को कांस्य पदक के लिए हुए 53 किलोग्राम भार वर्ग के फ्री स्टाइल मुकाबले में अंतिम ने प्रतिद्वंद्वी पहलवान को 16-6 से हरा कांस्य पदक पर कब्जा किया है। वहीं पदक जीतने पर अंतिम के परिवार में खुशी का माहौल है। परिवार के सदस्यों ने अंतिम का मैच देखा।
इस जीत से अंतिम पंघाल ने भारत के लिए पेरिस 2024 ओलम्पिक कोटा भी हासिल किया। बता दें ग्रीष्मकालीन खेलों के आगामी संस्करण के लिए कुश्ती में यह देश का पहला कोटा है। राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ओलंपिक खेलों में अपने संबंधित देशों के प्रतिनिधित्व के लिए विशेष अधिकार रखती हैं। इसलिए ओलम्पिक खेलों में एथलीटों की भागीदारी उनके एनओसी पर निर्भर करती है, जो उन्हें पेरिस 2024 में अपने प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनती है।
चार बहनों में सबसे छोटी अंतिम
अंतिम के पिता रामनिवास किसान है और माता कृष्णा गृहिणी हैं। चार बहनों में अंतिम सबसे छोटी हैं, उसका एक भाई है। अंतिम की बड़ी बहन सरिता कबड्डी की नेशनल खिलाड़ी रह चुकी हैं। सरिता के कहने पर ही उसने पहलवानी शुरू की थी।
स्वीडन की पहलवान को पछाड़ा
अंतिम ने स्वीडन की एम्मा जोना मालमग्रेन पर जीत हासिल करके चैंपियनशिप में भारत के लिए पहला मेडल सुरक्षित किया। इसके साथ ही अंतिम ने 53 किग्रा वर्ग में पेरिस ओलंपिक में भी अपना स्थान पक्का कर लिया है। स्वीडन की एम्मा जोना डेनिस माल्मग्रेन पर अपनी जीत के साथ वे विश्व चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली सिर्फ छठी भारतीय महिला है।
ओलम्पिक 2024 में शामिल होने वाली पहली भारतीय पहलवान बनी
उच्च स्कोरिंग मुकाबले में अंतिम को तकनीकी वरीयता के आधार पर विजेता घोषित किया गया। इसके साथ ही वे पेरिस ओलम्पिक 2024 में शामिल होने वाली (पुरुष और महिला) पहली भारतीय पहलवान बन गईं हैं। इससे पहले विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली महिलाओं में गीता फोगाट (2012), बबीता फोगाट (2012), पूजा ढांडा (2018), विनेश फोगाट (2019) और अंशु मलिक (2021) के नाम शामिल हैं और अब अंतिम इसमें शामिल हुई हैं।
पिता की तपस्या अंतिम
अंतिम पंघाल मूलत : हरियाणा के हिसार के भगाना गांव की रहने वालीं हैं। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी अंतिम के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग दिला सके। मगर किसान पिता रामनिवास ने भी जिद ठान ली थी कि बेटी को चैंपियन बनाकर रहूंगा। उन्होंने बिना सोचे-समझे अपनी डेढ़ एकड़ जमीन, गाड़ी, ट्रैक्टर से लेकर कई मशीनें बेच दी। गांव में कोचिंग की सुविधा नहीं थी, तो बेटी के सपने को पंख लगाने के लिए गांव ही छोड़ दिया। शुरुआत में अंतिम ने महाबीर स्टेडियम में एक साल तक अभ्यास किया। अब बीते चार साल से हिसार के गंगवा में रहकर बाबा लालदास अखाड़ा में ट्रेनिंग करती हैं। अंतिम पंघाल अब वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली आठवीं भारतीय महिला पहलवान बन चुकीं हैं।