ताले वाली माता मंदिर कानपुर में स्थित है, जो माता काली के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की अनोखीता यह है कि यहां मान्यता है कि ताला लगाने से मन्नत पूरी होती है।
जानकारी अनुसार बहुत समय पहले एक महिला बहुत परेशान थी, लेकिन वह फिर भी नियमानुसार मंदिर में आकर मां काली की पूजा करती थी। एक दिन उसे किसी ने मंदिर में ताला लगाते हुए देखा, जिसका कारण उससे पूछा गया। उसने बताया कि मां ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर ऐसा करने के लिए कहा है, जिससे उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। जिसके बाद उसने ताला लगाकर मंदिर में बहुत समय तक पूजा की। कुछ समय बाद मंदिर से ताला गायब हो गया और कहा गया कि मंदिर की दीवार पर लिखा था मन्नत पूरी हो गई है, इसलिए मैं ताला खोलकर ले जा रही हूं।
मंदिर में ताला लगाने के पहले विधि-विधान से माता की पूजा की जाती है और प्रार्थना की जाती है कि मन्नत पूरी हो। हजारों लोग यहां आते हैं, कुछ ताला लगाने आते हैं, तो कुछ ताला खोलने। सैंकड़ों ताले हर समय आप यहां देख सकते हैं। क्षेत्रीय लोगों की इस स्थान को लेकर बहुत आस्था है और अब तो अपने चमत्कारों के चलते इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी है।
जल्द ही भक्त ताला खोलने के लिए है लौटते
मंदिर का निर्माण कब हुआ, इसके बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। किसने इसे बनवाया, यह भी कुछ नहीं पता। इसकी आयु के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। यहां ताले वाली माता की आस्था इतनी है कि हर उम्र और वर्ग के लोगों को यहां आकर ताला लगाते और खोलते देखा जा सकता है। यहां कहा जाता है कि ताले वाली माता अपने भक्तों को ज्यादा इंतजार नहीं करातीं और भक्त जल्दी ही मंदिर पुनः ताला खोलने के लिए लौटते हैं।
सोने, चांदी और अन्य धातुओं के भी लगते है ताले
300 वर्ष पुराने इस मां काली के मंदिर में नवरात्र के अवसर पर प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में भक्त मां के दर्शनों के लिए आते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त सच्ची श्रद्धा से मां के मंदिर में ताला बंद कर मनोकामना मांगता है, वह अवश्य पूर्ण होती है। आमतौर पर यहां लोहे के ताले लगाए जाते हैं, लेकिन कुछ भक्त मां के चरणों में सोने, चांदी और अन्य धातुओं से निर्मित ताले लगाते हैं। मंदिर में ताला लगाने से पूर्व ताले का पूर्ण विधि विधान से पूजन करना पड़ता है।