हिन्दू घरों में पूजा और आरती का महत्व बहुत उच्च होता है। इसके लिए शास्त्रों में कई नियम और मार्गदर्शन दिए गए हैं। अगर ये नियम सही से अनुसरण नहीं किए जाते हैं, तो व्यक्ति को पूजा-पाठ के विपरीत परिणाम भी मिल सकते हैं। इसलिए ध्यान देने योग्य है कि पूजा कब और कैसे करनी चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार पूजा के लिए सबसे उत्तम समय प्रातःकाल होता है। इस समय की गई पूजा का प्रभाव सीधे ईश्वर तक पहुंचता है। पूजा का सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है, जो प्रातः 4:30 से 5:00 बजे के बीच होता है। इस समय में पूजा करने से अधिक शुभ फल मिलता है।

पूजा का दूसरा शुभ समय प्रातः 9 बजे तक होता है। इसके अलावा मध्याह्न के समय भी पूजा करने का उपाय है, जो दोपहर 12 बजे तक होता है। संध्या के समय भी पूजा का महत्व है, जो शाम को 4:30 बजे से शाम 6:00 बजे के बीच होता है। रात को 9:00 बजे के बाद की पूजा भी की जा सकती है, लेकिन यह शास्त्रों में उत्तम माना नहीं जाता है।

अनुशासन और सावधानिया
पूजा के अतिरिक्त समयों को लेकर भी कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं। शास्त्रों में यह बताया गया है कि कभी भी दोपहर के समय पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए। इस समय की गई पूजा को ईश्वर स्वीकार नहीं किया जाता है, क्योंकि दोपहर 12 से 4 बजे के बीच को देवी-देवताओं का आराम का समय माना जाता है। शाम की आरती के बाद भी पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए। इस समय देवी-देवता सो जाते हैं और इसलिए इस समय की गई पूजा का भी कोई फल प्राप्त नहीं होता है।

सूतक काल में भी पूजा-पाठ वर्जित
सूतक काल में भी पूजा-पाठ वर्जित माना जाता है। यहाँ सूतक का मतलब है किसी के जन्म या मृत्यु का समय। इस समय में पूजा करने से विपरीत परिणाम हो सकता है। सूतक हटने के बाद ही पूजा की जानी चाहिए। इस दौरान भगवान की मूर्ति का स्पर्श भी वर्जित माना जाता है।

ध्यान देने योग्य
पूजा और आरती का समय और नियमों का पालन करना हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। इन नियमों का पालन करने से हम ईश्वर के प्रति अधिक समर्पण और श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इसलिए अपने धार्मिक कर्तव्यों को निरंतर निभाना अत्यंत आवश्यक है।



	