मां सुरकंडा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जब आप इस मंदिर की यात्रा करते हैं, तो सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। सुरकंडा देवी मंदिर की यह मान्यता बहुत प्रसिद्ध है और इसी कारण यहां रोजाना भक्तों का भारी आवागमन रहता है।
बता दें कि सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी का मंदिर टिहरी के जौनुपर पट्टी में सुरकुट पर्वत पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। भगवान शिव ने सती को यज्ञ में भाग नहीं लेने की सलाह दी, लेकिन सती यज्ञ में पहुंच गईं। वहां उनका अपमान हुआ, जिसके बाद माता सती ने अपने आपको यज्ञ कुंड में धकेल दिया।

भगवान शिव रौद्र रूप में आए और सती के शव को त्रिशूल में टांगकर आकाश में भ्रमण करने लगे। सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा और वहां से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह कथा केदारखंड और स्कंद पुराण में मिलती है।

गंगा दशहरा पर उमड़ता है जनसैलाब
मां सुरकंडा मंदिर में गंगा दशहरा के मौके पर देवी के दर्शनों का विशेष महत्व है। यहां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं। गंगा दशहरा के मौके पर यहां के दर्शन करने वाले भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि कई पर्वत श्रृखलाएं भी दिखाई देती हैं।

दर्शन करना एक अद्वितीय अनुभव
यहां के दरबार साल भर खुले रहते हैं, और भक्तों का स्वागत सदैव होता है। इस मंदिर का दर्शन करने से लोगों को आनंद और शांति की अनुभूति होती है। मां सुरकंडा मंदिर का दर्शन करने के लिए लोग गंगा दशहरा के मौके पर यहां आते हैं। इस समय यहां भक्तों का भारी आवागमन रहता है। मां सुरकंडा के दर्शन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और लोग आनंद और शांति का अनुभव करते हैं। मां सुरकंडा मंदिर का दर्शन करना एक अद्वितीय अनुभव है और यहां के भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।

