America ने एक बार फिर अप्रवासी भारतीयों को डिपोर्ट करना शुरू किया है। डिपोर्टेशन की तीसरी खेप में Karnal जिले के 9 युवक अपने घर वापस लौट आए हैं। ये युवक एजेंटों के झूठे वादों और आकर्षक डॉलर कमाने के सपने दिखाकर अमेरिका पहुंचे थे, लेकिन वहां उन्हें उम्मीद के बजाय निराशा का सामना करना पड़ा। इन युवकों ने अपनी ज़मीनें बेच दीं और भारी कर्ज लिया, फिर डंकी से अमेरिका का रुख किया।
अरुण पाल की दर्दनाक यात्रा
घरौंडा के अरुण पाल ने अपनी आधी एकड़ ज़मीन बेचकर अमेरिका जाने का सपना देखा था। उसने 50 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन उसे केवल 20 दिन में डिपोर्ट कर दिया गया। अरुण की यात्रा हिमाचल के एक एजेंट द्वारा कराई गई थी, जिसने उसे 20 दिन में अमेरिका पहुंचाने का वादा किया था। लेकिन, अरुण को 14 महीने का लंबा और कष्टपूर्ण रास्ता तय करना पड़ा। दुबई, थाईलैंड, लाउस, ब्राजील, पेरू, और कोलंबिया जैसे देशों से होते हुए उसने किसी तरह अमेरिका की सीमा पार की, लेकिन वहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया और कड़ी यातनाएं दी गईं। अंततः, उसे भारतीय सैनिकों द्वारा डिपोर्ट कर दिया गया।
अनुज की कड़ी कहानी
जुंडला गांव के 35 वर्षीय अनुज ने अपनी कार वर्कशॉप का कारोबार छोड़कर अमेरिका जाने का सपना देखा। एक असंध के एजेंट ने उसे अमेरिका भेजने का वादा किया और 45 लाख रुपये की डील फाइनल की। अनुज को बताया गया था कि वह मेक्सिको बॉर्डर तक फ्लाइट से जाएगा, लेकिन यह सिर्फ एक झूठ था। अनुज को 15 दिन के अंदर अमेरिका पहुंचने का वादा किया गया था, लेकिन वह महीनों तक यात्रा करता रहा और अंत में 20 दिन अमेरिका में बिताने के बाद डिपोर्ट हो गया। अब उसे कर्ज चुकाने के लिए अपना घर बेचना पड़ेगा।
अमित की डंकी यात्रा
राहड़ा गांव के 22 वर्षीय अमित ने 40-45 लाख रुपये खर्च किए थे और अमेरिका जाने की उम्मीदें पाल रखी थीं। उसे ग्रीस में काम करने वाले अपने भाई से प्रेरित होकर यह रास्ता चुना था। लेकिन, जैसे ही वह मेक्सिको बॉर्डर पार करके अमेरिका में घुसा, उसे पकड़ लिया गया और डिपोर्ट कर दिया गया। अब अमित को अपने परिवार और दोस्तों से लिए गए कर्ज को चुकाने की चिंता है।
कर्ज और संघर्ष का रास्ता
ये सभी युवक अब आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और सबसे बड़ी चिंता यही है कि वे कर्ज कैसे चुकाएंगे। घर बेचना, वर्कशॉप में वापस काम करना, और परिवार से पैसे उधार लेना इन युवकों के लिए अब एकमात्र विकल्प बन चुका है।
अमेरिका में डिपोर्ट होने के बाद इन युवकों के सामने बड़ा सवाल है – क्या उनके सपने कभी पूरे होंगे, या उनकी कड़ी मेहनत और पैसों की बर्बादी सिर्फ एक ख्वाब ही बनकर रह जाएगी?