➤अमेरिका-भारत के बीच टैरिफ और ट्रेड पर तनाव बढ़ा
➤इस तनाव के बीच पुतिन के भारत दौरे की अटकलें चर्चा में
➤भारत-रूस साझेदारी से वैश्विक रणनीतिक संतुलन साधने की कोशिश
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा को अब केवल द्विपक्षीय शिष्टाचार के रूप में नहीं देखा जा रहा, बल्कि यह वैश्विक राजनीति में एक बड़ा संकेत बनकर उभर रहा है। पहले यह दौरा अगस्त 2025 के अंत तक प्रस्तावित था, लेकिन अब इसे वर्ष के अंत तक टालने की संभावना जताई जा रही है।
इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच हालिया टैरिफ विवाद ने नई हलचल मचा दी है। अमेरिका की ओर से कुछ भारतीय वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाए जाने के बाद भारत भी कड़े रुख में आ गया है। ऐसे में भारत के लिए यह रणनीतिक समय है, जब वह रूस के साथ अपनी साझेदारी को नई मजबूती देकर अमेरिका को एक कूटनीतिक संकेत दे सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत-पुतिन मुलाकात में सिर्फ रक्षा सौदे या ऊर्जा परियोजनाएं नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर रणनीतिक संतुलन का नया अध्याय भी लिखा जा सकता है। अमेरिका के दबाव और पश्चिमी लॉबी के प्रभाव के बीच भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को साबित करने की दिशा में अग्रसर है।
रूस के लिए भी यह यात्रा बेहद अहम है। यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रूस एशियाई देशों, खासकर भारत, चीन और ईरान की ओर नज़दीकियां बढ़ा रहा है। ऐसे में भारत में पुतिन की उपस्थिति यह स्पष्ट संकेत होगी कि रूस अब अपनी रणनीतिक साझेदारियों को यूरोप से हटाकर एशिया की ओर शिफ्ट कर रहा है।
इस यात्रा में रक्षा उपकरणों की आपूर्ति, एनेर्जी पाइपलाइन्स, आर्कटिक सहयोग, और स्थानीय करेंसी में व्यापार जैसे मुद्दों पर गहन चर्चा की संभावना है। साथ ही ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंचों पर सहयोग को और गहरा किया जा सकता है।

