हरियाणा के चर्चित 162 करोड़ के पेंशन घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में पेश कर दी है। इस रिपोर्ट में सभी जिलों के समाज कल्याण अधिकारियों को दोषी ठहराया गया है। सीबीआई ने रिपोर्ट में हाईकोर्ट को यह भी बताया है कि वर्ष 2012 में पेंशन वितरण अनियमितताओं के मामले में सरकार के हाईकोर्ट में दिए गए भरोसे के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
गौरतलब है कि हरियाणा के पेंशन घोटाला मामले में 12 वर्ष बाद भी सरकार गंभीर नहीं दिख रही है। हाईकोर्ट का कहना है कि यह कोर्ट की अवमानना का मामला बनता है। इस मामले में हाईकोर्ट ने सामाजिक न्याय विभाग के प्रमुख सचिव और महानिदेशक को कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि सीबीआई की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए सभी अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।
साथ ही हाईकोर्ट का कहना है कि वर्ष 2012 से लेकर अब तक जितने भी समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव और महानिदेशक थे, वह प्रथम दृष्टि से कोर्ट की अवमानना के दोषी हैं।
बता दें कि वर्ष 2017 में आरटीआई कार्यकर्ता राकेश बैंस ने अपने वकील प्रदीप रापड़िया के माध्यम से प्रदेश भर में हुए पेंशन घोटाले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग की थी। समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने ऐसे लोगों को भी पेंशन बांट दी, जो या तो स्वर्ग सिधार चुके थे या पेंशन लेने की योग्यता ही पूरी नहीं करते थे। इस प्रकार सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगाने का काम किया जा रहा था।
वहीं याचिका कर्ता के वकील प्रदीप रापड़िया ने हाईकोर्ट को बताया कि हरियाणा में सिर्फ जिला कुरूक्षेत्र में एक एफआईआर दर्ज करके और एक सेवादार से 13,43,725 रुपये की रिकवरी कर सरकार जांच को सिर्फ एक ही जिले तक सीमित रखना चाहती है। वहीं कैग रिपोर्ट में पूरे हरियाणा का घोटाला सामने आया था। ऐसे में हाईकोर्ट के जज विनोद भारद्वाज ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।
इसके बाद 29 फरवरी को सीबीआई ने हाईकोर्ट के सामने स्टेट्स रिपोर्ट दायर करते हुए बताया कि हरियाणा भर के दोषी जिला समाज कल्याण अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होना आवश्यक है। सीबीआई रिपोर्ट में हाईकोर्ट को यह भी बताया गया है कि वर्ष 2012 में भी एक पेंशन वितरण की अनियमताओं के मामले में सरकार के उचित कार्यवाही के आश्वासन के बाद हाईकोर्ट ने मामले में कार्यवाही करने के आदेश दिए थे। इसके बावजूद 12 साल बाद भी सरकार मामले में गंभीर नहीं दिख रही है। ऐसे में हाईकोर्ट का कहना है कि यह कोर्ट की अवमानना का मामला बनता है।