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हरियाणा में खाद का संकट, किसान लाइन में, फसल सूखने का डर

हरियाणा की बड़ी खबर

हरियाणा में खाद का संकट, किसान परेशान
सरकारी केंद्रों पर लंबी लाइनें, खाली हाथ लौटते किसान
प्राइवेट दुकानों पर मंहगे दामों पर जबरन बेचे जा रहे कीटनाशक

जितेंद्र अहलावत


हरियाणा में इन दिनों सबसे ज्यादा चिंता की लकीरें अगर किसी के चेहरे पर देखी जा सकती हैं, तो वो किसान का चेहरा है। राज्य के कई जिलों में खाद की भारी किल्लत ने खेती-किसानी को झकझोर कर रख दिया है। धान की फसल इस वक्त अपने विकास के अहम चरण में है और उसे खाद की जरूरत है, लेकिन सरकारी केंद्रों पर या तो स्टॉक खत्म हो चुका है या वितरण की रफ्तार बेहद धीमी है।

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सुबह होते ही सरकारी खाद वितरण केंद्रों पर किसानों की लंबी कतारें लग जाती हैं, लेकिन वहां से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। किसी को एक बोरी भी नसीब नहीं होती तो कोई घंटों लाइन में खड़ा रहकर थककर लौट जाता है। हालत ऐसी है कि किसान खेत छोड़ कर सरकारी दुकानों के बाहर डेरा डाले बैठे हैं।

इसी का फायदा उठा रहे हैं प्राइवेट खाद विक्रेता, जो किसानों को मनमाने दामों पर खाद तो दे ही रहे हैं, साथ में कीटनाशक और अन्य महंगी दवाएं जबरन थमा रहे हैं। किसान की मजबूरी यह है कि उसे फसल बचानी है, तो वह ये अतिरिक्त बोझ भी उठाता है। किसान खुद कहते हैं— “खाद नहीं मिली तो फसल सूख जाएगी, इसलिए खेत छोड़ दुकान पर बैठे हैं।”

विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला है। कांग्रेस, इनेलो और JJP नेताओं ने कहा है कि सरकार का यह रवैया किसानों के साथ अन्याय है और यह सिर्फ ‘कागज़ों पर उपलब्धता’ की बात कर रही है। हालांकि सरकार की ओर से बयान आया है कि “राज्य में खाद की कोई कमी नहीं है और सभी जिलों में सप्लाई नियमित है”, लेकिन ग्राउंड रियलिटी इससे उलट है

हरियाणा के कैथल, करनाल, सिरसा, जींद और फतेहाबाद जैसे जिलों से लगातार खबरें आ रही हैं कि किसान दिन भर लाइन में खड़े हैं और उन्हें खाद नहीं मिल रही। जिन किसानों की बुआई अभी बाकी है, वो चिंता में हैं कि अगर समय पर खाद नहीं मिली, तो फसल पूरी तरह से चौपट हो जाएगी।

अब सवाल सरकार से है — अगर खाद की कमी नहीं है तो किसान लाइन में क्यों है? अगर प्राइवेट दुकानदार मनमानी कर रहे हैं, तो प्रशासन कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा? क्या सिर्फ बयान देकर सरकार किसानों की तकलीफ खत्म कर देगी?

किसान की लड़ाई अब सिर्फ खाद की नहीं, उसकी फसल और भविष्य की लड़ाई है।