➤ अफसरों के रवैये से सत्ता और विपक्ष के विधायक दोनों नाराज, फोन तक नहीं उठाए जा रहे
➤ 8 से ज्यादा घटनाएं आईं सामने, हाथापाई से लेकर कुर्सी न देने तक की शिकायतें
➤ विधायक प्रोटोकॉल कमेटी का गठन नहीं, स्पीकर ने कहा- प्रिविलेज कमेटी में मर्ज कर दी गई
हरियाणा में अफसरशाही विधायकों के रूतबे पर भारी पड़ रही है। सियासी मुद्दा बनने में भी समय नहीं लग रहा। पलिटिक्ल सिनेरियो में हालात ऐसे हो चुके हैं कि कई विधायक, चाहे वे सत्तारूढ़ भाजपा के हों या विपक्षी कांग्रेस के, यह खुलकर कह रहे हैं कि उनकी अफसर नहीं सुन रहे। आरोप लग रहे हैं कि अफसर न कार्यक्रमों में बुलावा आता है और न ही फोन उठाते हैं। यही नहीं विधायक प्रोटोकॉल कमेटी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उसका दोबारा गठन नहीं किया गया, जिससे शिकायतों का कोई औपचारिक मंच भी नहीं बचा।
पूर्व मंत्री अनिल विज तक कह चुके हैं कि विधायक का प्रोटोकॉल मुख्य सचिव से ऊपर होता है, और हर अधिकारी को उनका फोन उठाना चाहिए। लेकिन विधायकों के सम्मान की यह व्यवस्था अब ढहती दिख रही है।
8 प्रमुख घटनाएं इस ओर इशरा कर रही….
थानेसर में कांग्रेस विधायक अशोक अरोड़ा के साथ भाजपा पार्षद प्रतिनिधि ने हाथापाई की, अधिकारी मूकदर्शक बने रहे।
अंबाला में कांग्रेस विधायक निर्मल सिंह को न निगम कमिश्नर ने रिसीव किया, न कुर्सी दी।
पानीपत के भाजपा विधायक प्रमोद विज ने अधिकारी से बात करने के लिए 13 बार ‘सॉरी-प्लीज’ कहा, फिर भी बात नहीं बनी।
उकलाना में कांग्रेस विधायक नरेश सेलवाल को SDO ने फोन उठाने तक लायक नहीं समझा।
गुहला के कांग्रेस विधायक देवेंद्र हंस ने SP को 20 से ज्यादा कॉल किए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
सिरसा में विधायक गोकुल सेतिया को DTP दफ्तर में अपमान का सामना करना पड़ा।
शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा ने जब बिजली निगम के SE को कॉल किया तो वह भी नहीं उठाया गया — SE को बाद में सस्पेंड किया गया।
रेणु बाला जैसी महिला विधायक तक को न बैठक की सूचना दी गई, न बैठने को सम्मानजनक जगह।
वहीं भाजपा के वरिष्ठ विधायक रामकुमार गौतम और मंत्री श्याम सिंह राणा भी कह चुके हैं कि आज विधायक के पास कोई इज्जत नहीं बची। यह बात विपक्ष के लिए तो गंभीर है ही, सत्ता पक्ष के लिए भी आत्ममंथन का विषय है।
पूर्व में तीन बार गठित हुई विधायक प्रोटोकॉल कमेटी अब अस्तित्व में नहीं है। स्पीकर हरविंद्र कल्याण का कहना है कि इसे प्रिविलेज कमेटी में मर्ज कर दिया गया है, जबकि यह कमेटी केवल विधानसभा के अंदर की प्रक्रियाओं से जुड़ी होती है। हाईकोर्ट के वकील हेमंत कुमार ने कमेटी के पुनर्गठन की मांग सीएम, स्पीकर और गवर्नर तक पहुंचा दी है।
हरियाणा के सियासी हालातों में यह सवाल अब और गूंज रहा है — क्या विधायक अब केवल नाम के जनप्रतिनिधि रह गए हैं, जिनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं?