Haryana के Bhiwani जिले के छोटे से गांव ढाबढाणी में जन्मी सुलेखा कटारिया ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी मेहनत और कला के जरिए न केवल खुद को साबित किया, बल्कि राष्ट्रपति भवन तक अपनी सफलता की तालियां पहुंचाईं। सुलेखा का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उनके सपने कभी छोटे नहीं थे।
सुलेखा का बचपन आर्थिक तंगी के बीच बीता। उनके पिता एक छोटे किसान और दर्जी थे, जो घर की चार संतानों की पढ़ाई का खर्च बमुश्किल उठा पाते थे। इसके बावजूद सुलेखा ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और राजीव गांधी महिला महाविद्यालय, भिवानी से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, और सुलेखा ने कई बार संघर्ष किया, जैसे कि कॉलेज की फीस और ऑटो का किराया ना होने पर भी पढ़ाई जारी रखी। एक समय ऐसा भी आया जब उनके बड़े भाई की किडनियां खराब हो गईं, और परिवार की स्थिति और भी कठिन हो गई। ऐसे में सुलेखा को दिल्ली आकर नौकरी करनी पड़ी।
लेकिन जीवन में कभी हार ना मानने वाली सुलेखा ने अपनी कला को निखारा। सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते समय उन्होंने गीता जयंती महोत्सव में अपनी पेंटिंग बनाई, जिसे ब्लॉक लेवल पर पहला स्थान मिला। यही पल था, जब उन्हें एहसास हुआ कि उनकी कला में कुछ विशेष है। इसके बाद उन्होंने विभिन्न जिलों और राज्यों में कई प्रतियोगिताएं जीतकर अपनी पहचान बनाई।
फिर एक दिन राष्ट्रपति भवन से उन्हें फोन आया, जिसमें बताया गया कि उनकी पेंटिंग को देश की टॉप 15 पेंटिंग्स में शामिल किया गया है, और उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाया जा रहा है। यह सुनकर पहले तो सुलेखा को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब आधिकारिक निमंत्रण आया, तो उनका यकीन पक्का हो गया।
राष्ट्रपति भवन पहुंचने पर सुलेखा ने वहां की भव्यता को देखा, लेकिन उनके दिल में संघर्षों की यादें ताजा हो गईं। राष्ट्रपति मुर्मू ने उनकी कला की सराहना की, और सबसे बड़ी खुशी की बात यह थी कि उनकी पेंटिंग को राष्ट्रपति भवन के एक विशेष हॉल में स्थायी रूप से प्रदर्शित किया गया।